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सरितेचा ओघ सागरीं आटला। विदेही भेटला मनामन॥ १॥
कवणाचे सांगातें पुसावया कवणातें। सांगतों ऐक तें तेथें कैचें॥ २॥
नाहीं दिवस राती नाहीं कुळ याती। नाहीं माया भ्रांति अवघेची॥ ३॥
म्हणे गोराकुंभार परियेसी नामदेवा सांपडला ठेवा विश्रांतीचा॥ ४॥