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"मानव-दानव-गाय-सिंह-करि-काक-मोर बन / हनुमानप्रसाद पोद्दार" के अवतरणों में अंतर

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कितने रूपों में वे प्रियतम आते नित्य हमारे पास।
 
कितने रूपों में वे प्रियतम आते नित्य हमारे पास।
 
देते कभी स्नेह-वत्सलता, देते कभी भयानक त्रास॥
 
देते कभी स्नेह-वत्सलता, देते कभी भयानक त्रास॥
प्रियतमको पहचान सभीमें, करें सभीका नित सत्कार।
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उनके सुख-प्रीत्यर्थ करें हम यथायोग्य सारे व्यवहार॥
 
उनके सुख-प्रीत्यर्थ करें हम यथायोग्य सारे व्यवहार॥
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21:06, 8 जून 2014 के समय का अवतरण

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(तर्ज लावनी-ताल कहरवा)

 
मानव-दानव-गाय-सिंह-करि-काक-मोर बन सुमन-सुगन्ध।
माता-पिता-पुत्र-पति-पत्नी, निज-पर-जोड़ विविध सबन्ध॥
कितने रूपों में वे प्रियतम आते नित्य हमारे पास।
देते कभी स्नेह-वत्सलता, देते कभी भयानक त्रास॥
प्रियतम को पहचान सभी में, करें सभीका नित सत्कार।
उनके सुख-प्रीत्यर्थ करें हम यथायोग्य सारे व्यवहार॥