"सूरज भैया / प्रभुदयाल श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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धरती के सब लोग सो रहे जाकर उन्हें उठाओ|| | धरती के सब लोग सो रहे जाकर उन्हें उठाओ|| | ||
− | मुर्गे थककर हार गये हैं ,कब से चिल्ला चिल्ला| | + | मुर्गे थककर हार गये हैं, कब से चिल्ला चिल्ला| |
निकल घोंसलों से गौरैयां, मचा रहीं हैं हल्ला|| | निकल घोंसलों से गौरैयां, मचा रहीं हैं हल्ला|| | ||
− | तारों ने मुँह फेर लिया है ,तुम मुंह धोकर जाओ | + | तारों ने मुँह फेर लिया है, तुम मुंह धोकर जाओ| |
− | धरती के सब लोग सो रहे ,जाकर उन्हें उठाओ|| | + | धरती के सब लोग सो रहे, जाकर उन्हें उठाओ|| |
− | पूरब के पर्वत की चाहत ,तुम्हें गोद में ले लें| | + | पूरब के पर्वत की चाहत, तुम्हें गोद में ले लें| |
सागर की लहरों की इच्छा, साथ तुम्हारे खेलें|| | सागर की लहरों की इच्छा, साथ तुम्हारे खेलें|| | ||
− | शीतल पवन कर रहा कत्थक ,धूप गीत तुम गाओ | + | शीतल पवन कर रहा कत्थक, धूप गीत तुम गाओ| |
धरती के सब लोग सो रहे, जाकर उन्हें उठाओ|| | धरती के सब लोग सो रहे, जाकर उन्हें उठाओ|| | ||
सूरज मुखी कह रहा” भैया", अब जल्दी से आएं| | सूरज मुखी कह रहा” भैया", अब जल्दी से आएं| | ||
− | देख आपका सुंदर मुखड़ा ,हम भी तो खिल जायें||’ | + | देख आपका सुंदर मुखड़ा, हम भी तो खिल जायें||’ |
− | जाओ बेटे जल्दी से जग, के दुख दर्द मिटाओ | + | जाओ बेटे जल्दी से जग, के दुख दर्द मिटाओ| |
− | धरती के सब लोग सो रहे,जाकर उन्हें उठाओ|| | + | धरती के सब लोग सो रहे, जाकर उन्हें उठाओ|| |
− | नौ दो ग्यारह हुआ अंधेरा ,कब से डरकर भागा| | + | नौ दो ग्यारह हुआ अंधेरा, कब से डरकर भागा| |
− | तुमसे भय खाकर ही उसने ,राज सिंहासन त्यागा|| | + | तुमसे भय खाकर ही उसने, राज सिंहासन त्यागा|| |
− | समर क्षेत्र में जाकर दिन पर, अपना रंग जमाओ | + | समर क्षेत्र में जाकर दिन पर, अपना रंग जमाओ| |
धरती के सब लोग सो रहे जाकर उन्हें उठाओ|| | धरती के सब लोग सो रहे जाकर उन्हें उठाओ|| | ||
− | अंधियारे से क्यों डरना,कैसा उससे घबराना| | + | अंधियारे से क्यों डरना, कैसा उससे घबराना| |
जहां उजाला हुआ तो निश्चित, है उसका हट जाना|| | जहां उजाला हुआ तो निश्चित, है उसका हट जाना|| | ||
− | सोलह घोड़ों के रथ चढ़कर, निर्भय हो कर जाओ | + | सोलह घोड़ों के रथ चढ़कर, निर्भय हो कर जाओ| |
धरती के सब लोग सो रहे जाकर उन्हें उठाओ|| | धरती के सब लोग सो रहे जाकर उन्हें उठाओ|| | ||
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10:42, 30 जून 2014 के समय का अवतरण
अम्मा बोली सूरज भैया जल्दी से उठ जाओ|
धरती के सब लोग सो रहे जाकर उन्हें उठाओ||
मुर्गे थककर हार गये हैं, कब से चिल्ला चिल्ला|
निकल घोंसलों से गौरैयां, मचा रहीं हैं हल्ला||
तारों ने मुँह फेर लिया है, तुम मुंह धोकर जाओ|
धरती के सब लोग सो रहे, जाकर उन्हें उठाओ||
पूरब के पर्वत की चाहत, तुम्हें गोद में ले लें|
सागर की लहरों की इच्छा, साथ तुम्हारे खेलें||
शीतल पवन कर रहा कत्थक, धूप गीत तुम गाओ|
धरती के सब लोग सो रहे, जाकर उन्हें उठाओ||
सूरज मुखी कह रहा” भैया", अब जल्दी से आएं|
देख आपका सुंदर मुखड़ा, हम भी तो खिल जायें||’
जाओ बेटे जल्दी से जग, के दुख दर्द मिटाओ|
धरती के सब लोग सो रहे, जाकर उन्हें उठाओ||
नौ दो ग्यारह हुआ अंधेरा, कब से डरकर भागा|
तुमसे भय खाकर ही उसने, राज सिंहासन त्यागा||
समर क्षेत्र में जाकर दिन पर, अपना रंग जमाओ|
धरती के सब लोग सो रहे जाकर उन्हें उठाओ||
अंधियारे से क्यों डरना, कैसा उससे घबराना|
जहां उजाला हुआ तो निश्चित, है उसका हट जाना||
सोलह घोड़ों के रथ चढ़कर, निर्भय हो कर जाओ|
धरती के सब लोग सो रहे जाकर उन्हें उठाओ||