भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मून खोलणो पड़ सी / ओम पुरोहित कागद" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम पुरोहित कागद |संग्रह=अंतस री ब...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
{{KKCatRajasthaniRachna}}
 
{{KKCatRajasthaniRachna}}
 
<poem>
 
<poem>
मा
+
चारूं कानी
एकली नी कर सकै
+
मुलकांवारो अंधारो है
आपरी संतान रो
+
आओ, म्हारै सागै रळो ।
पालण पोषण:
+
आपां भला‘ई‘
कीं तो
+
धोबो-धोबो अंधारो काढां,
बाप रो भी
+
चानणै नी बात तो सोचा ।
फर्ज हुवै।
+
जे आपां स्यूं
म्हारी जामण
+
अंधारो नी कढ सी
बता !
+
तो ना कढो !
बो कठै है
+
चानणो आपी
जको म्हानै
+
आप रो टैम काढ सी,
थारी कूख मांय
+
दूसरी बात और है कै
छोड‘र तनै
+
जे सूरज नै
वियागण बणाय‘र
+
आपरो अस्तित्व बचाणो है
निरवाळो होयोड़ो फिरै।
+
तो बो खुद
थारै
+
चिंता राख सी
अंतस री बळत
+
उण रो
लाय बण‘र
+
घरू मामलो है
उण दगैबाज रै
+
अर फेर आभी तो है
अणखावणै मुंडै नै
+
कै चानणै‘र अ‘धारै राी
क्यूं नी झुरड़ लेवै?
+
कुस्ती चाल रै‘यी है
तू मा है
+
अखूट, अछूट!
रजथानी नार है
+
अै एक दूसरै रै
इण खातर मून है
+
ऊपर नीचे अंावता रै‘वै ।
अर
+
अब ताईं तो
धार राख्या है
+
अंधारो जीत्यो
अखूट निगोट
+
न कोई चानणो
निर्जळा बरत ।
+
पण फेर बी आपां
पण मा !
+
आप रै हिस्सा रो काम करां
बरतां रै ताण
+
आपां चानणै री
नीं आया करै
+
मदद करां, भला‘ई
दगा दकवणिया बाप
+
राम बण‘र
अब तनै
+
अधारै सागै दगो करां
बरत तोड़ना पड़सी
+
अंधारै रै बाली नै मार‘र
मून खोलणा पड़सी ।
+
चानणै रै सुग्रीव नै
थारा जाया म्हे
+
राज सूंपां ।
कैर बोअटी फोग खींप
+
इण खातर आपां
बूई अर रोहिड़ा
+
धणां‘ई निबळा हां
तनतै उनाळै
+
पण फेर बी आओ !
बिनां गाभां
+
आपां अंधारो काढण री
थारै
+
बात ता करां ।
तर-तर
+
निबळै पड़तै
+
डील स्यूं
+
चिप‘र अब
+
घणा दिन
+
नी तोड़ सकां
+
अर तूं भी
+
अब
+
म्हारी तर-तर बधती
+
भूख तिस्स नै
+
खाली पड़तै हांचळां मांय
+
किता-क दिन
+
लिंया फिर सी ?
+
उतराधै स्यूं
+
हळ-हळ करतो
+
बैवतो आवै
+
खाथा-खाथा
+
डग भरतो
+
म्हारो दगैबाज बाप
+
इण खातर
+
अब तनै
+
कोई तिरिया चरित
+
रचणो पड़ सी।
+
का कोई लूंठो सो
+
ब्रह्य मंतर जप‘र
+
ब्रह्यास्तर चकणो पड़सी !
+
 
</poem>
 
</poem>

12:51, 1 जुलाई 2014 का अवतरण

चारूं कानी
मुलकांवारो अंधारो है
आओ, म्हारै सागै रळो ।
आपां भला‘ई‘
धोबो-धोबो अंधारो काढां,
चानणै नी बात तो सोचा ।
जे आपां स्यूं
अंधारो नी कढ सी
तो ना कढो !
चानणो आपी
आप रो टैम काढ सी,
दूसरी बात और है कै
जे सूरज नै
आपरो अस्तित्व बचाणो है
तो बो खुद
चिंता राख सी
ओ उण रो
घरू मामलो है
अर फेर आभी तो है
कै चानणै‘र अ‘धारै राी
कुस्ती चाल रै‘यी है
अखूट, अछूट!
अै एक दूसरै रै
ऊपर नीचे अंावता रै‘वै ।
अब ताईं तो
अंधारो जीत्यो
न कोई चानणो
पण फेर बी आपां
आप रै हिस्सा रो काम करां
आपां चानणै री
मदद करां, भला‘ई
राम बण‘र
अधारै सागै दगो करां
अंधारै रै बाली नै मार‘र
चानणै रै सुग्रीव नै
राज सूंपां ।
इण खातर आपां
धणां‘ई निबळा हां
पण फेर बी आओ !
आपां अंधारो काढण री
बात ता करां ।