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काव्य/दुख को नापने का
एक पैमाना पुराना
आज भी बदला नहीं है
दुख कितना हो पराया
काव्य का है
काव्य अपना/ और अपना काव्य
दुख का है...
दुख
जिसकी आँख में है
आग-पानी
झूठ है जिनकी अदावत की कहानी
सच, समन्दर में छुपे ज्वालामुखी
सुख है जगाना
दुख यों बदला नहीं है ।
( रचनाकाल : 04.11.1979)