भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"उपदेशसाहस्री / उपदेश ५ / आदि शंकराचार्य" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आदि शंकराचार्य |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 17: | पंक्ति 17: | ||
चैतन्यप्रतिबिम्बेन व्याप्तो बोधो हि जायते। | चैतन्यप्रतिबिम्बेन व्याप्तो बोधो हि जायते। | ||
− | + | ::बुद्धेः शब्दादिनिर्भासस्तेन मोमुह्यते जगत्॥ | |
चैतन्याभासताहमस्तादर्थ्यं च तदस्य यत्। | चैतन्याभासताहमस्तादर्थ्यं च तदस्य यत्। | ||
::इदमंशप्रहाणे न परः सोऽनुभवो भवेत्॥ | ::इदमंशप्रहाणे न परः सोऽनुभवो भवेत्॥ | ||
</poem> | </poem> |
14:07, 9 जुलाई 2014 के समय का अवतरण
मूत्राशञ्को यथोदञ्को नाग्रहीदमृतं मुनिः।
कर्मनाशभयाज् जन्तोरात्मज्ञानाग्रहस्तथा॥
बुद्धिस्थश्चलतीवात्मा ध्यायतीव च दृश्यते।
नौगतस्य यथा वृक्षास्तद्वत् संसारविभ्रमः॥
नौस्थस्य प्रातिलोम्येन नगानां गमनं यथा।
आत्मनः संसृतिस्तद्वद् ध्यायतीवेति हि श्रुतिः॥
चैतन्यप्रतिबिम्बेन व्याप्तो बोधो हि जायते।
बुद्धेः शब्दादिनिर्भासस्तेन मोमुह्यते जगत्॥
चैतन्याभासताहमस्तादर्थ्यं च तदस्य यत्।
इदमंशप्रहाणे न परः सोऽनुभवो भवेत्॥