भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तुम मेरे पास रहो फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Amitprabhakar (चर्चा | योगदान) छो |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ | |रचनाकार=फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatNazm}} | |
− | तुम मेरे पास रहो | + | <poem> |
− | मेरे क़ातिल, मेरे दिलदार, मेरे पास रहो | + | तुम मेरे पास रहो |
− | जिस घड़ी रात चले | + | मेरे क़ातिल, मेरे दिलदार, मेरे पास रहो |
− | आसमानों का लहू पी के सियह <ref>काली</ref> रात चले | + | जिस घड़ी रात चले |
− | मर्हम-ए-मुश्क <ref>कस्तूरी मलहम</ref> लिये नश्तर-ए-अल्मास <ref>हीरे की छुरी</ref> चले | + | आसमानों का लहू पी के सियह <ref>काली</ref> रात चले |
− | बैन करती हुई, हँसती हुई, गाती निकले | + | मर्हम-ए-मुश्क <ref>कस्तूरी मलहम</ref> लिये नश्तर-ए-अल्मास <ref>हीरे की छुरी</ref> चले |
− | दर्द के कासनी, पाज़ेब बजाती निकले | + | बैन करती हुई, हँसती हुई, गाती निकले |
− | जिस घड़ी सीनों में डूबे हुए दिल | + | दर्द के कासनी, पाज़ेब बजाती निकले |
+ | जिस घड़ी सीनों में डूबे हुए दिल | ||
आस्तीनों में निहाँ हाथों की, | आस्तीनों में निहाँ हाथों की, | ||
− | रह तकने लगे, आस लिये | + | रह तकने लगे, आस लिये |
− | और बच्चों के बिलखने की तरह, क़ुल-क़ुल-ए-मय | + | और बच्चों के बिलखने की तरह, क़ुल-क़ुल-ए-मय |
− | बहर-ए-नासुदगी मचले तो मनाये न मने | + | बहर-ए-नासुदगी मचले तो मनाये न मने |
− | जब कोई बात बनाये न बने | + | जब कोई बात बनाये न बने |
− | जब न कोई बात चले | + | जब न कोई बात चले |
− | जिस घड़ी रात चले | + | जिस घड़ी रात चले |
− | जिस घड़ी मातमी, सुन-सान, सियह रात चले | + | जिस घड़ी मातमी, सुन-सान, सियह रात चले |
पास रहो<br> | पास रहो<br> | ||
− | मेरे क़ातिल, मेरे दिलदार, मेरे पास रहो < | + | मेरे क़ातिल, मेरे दिलदार, मेरे पास रहो |
− | + | </poem> | |
− | + | ||
<references/> | <references/> |
11:59, 24 जुलाई 2014 का अवतरण
तुम मेरे पास रहो
मेरे क़ातिल, मेरे दिलदार, मेरे पास रहो
जिस घड़ी रात चले
आसमानों का लहू पी के सियह <ref>काली</ref> रात चले
मर्हम-ए-मुश्क <ref>कस्तूरी मलहम</ref> लिये नश्तर-ए-अल्मास <ref>हीरे की छुरी</ref> चले
बैन करती हुई, हँसती हुई, गाती निकले
दर्द के कासनी, पाज़ेब बजाती निकले
जिस घड़ी सीनों में डूबे हुए दिल
आस्तीनों में निहाँ हाथों की,
रह तकने लगे, आस लिये
और बच्चों के बिलखने की तरह, क़ुल-क़ुल-ए-मय
बहर-ए-नासुदगी मचले तो मनाये न मने
जब कोई बात बनाये न बने
जब न कोई बात चले
जिस घड़ी रात चले
जिस घड़ी मातमी, सुन-सान, सियह रात चले
पास रहो
मेरे क़ातिल, मेरे दिलदार, मेरे पास रहो
<references/>