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"केरा कै पात मोरा मन / हरिश्चंद्र पांडेय 'सरल'" के अवतरणों में अंतर
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केरा कै पात मोरा मन, बैरी कै काँट न उगाओ। | केरा कै पात मोरा मन, बैरी कै काँट न उगाओ। | ||
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अबहीं पियासे नयन, नयनन कै पलक न झपाओ॥ | अबहीं पियासे नयन, नयनन कै पलक न झपाओ॥ | ||
आह भरैं कहि जायँ बतिया सारी, | आह भरैं कहि जायँ बतिया सारी, | ||
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भाठी जराय देय लोहेउ कै आरी, | भाठी जराय देय लोहेउ कै आरी, | ||
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यनकै अनोखी अगिन, दुखिया कै आह न जगाओ। | यनकै अनोखी अगिन, दुखिया कै आह न जगाओ। | ||
मरुथल जिनिगिया है रेत निसानी, | मरुथल जिनिगिया है रेत निसानी, | ||
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बाढ़ै पियसिया तौ झलकै जस पानी, | बाढ़ै पियसिया तौ झलकै जस पानी, | ||
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छले जायँ भोले हिरन, कंचन घट बिख न भराओ। | छले जायँ भोले हिरन, कंचन घट बिख न भराओ। | ||
दरद हमार मोरे जियरा कै साथी, | दरद हमार मोरे जियरा कै साथी, | ||
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जरि गवा तेल मुला बरी नहीं बाती, | जरि गवा तेल मुला बरी नहीं बाती, | ||
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थकि चली साँस कै चलन, जोति गये दीप न जराओ॥ | थकि चली साँस कै चलन, जोति गये दीप न जराओ॥ | ||
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11:26, 28 जुलाई 2014 के समय का अवतरण
केरा कै पात मोरा मन, बैरी कै काँट न उगाओ।
अबहीं पियासे नयन, नयनन कै पलक न झपाओ॥
आह भरैं कहि जायँ बतिया सारी,
भाठी जराय देय लोहेउ कै आरी,
यनकै अनोखी अगिन, दुखिया कै आह न जगाओ।
मरुथल जिनिगिया है रेत निसानी,
बाढ़ै पियसिया तौ झलकै जस पानी,
छले जायँ भोले हिरन, कंचन घट बिख न भराओ।
दरद हमार मोरे जियरा कै साथी,
जरि गवा तेल मुला बरी नहीं बाती,
थकि चली साँस कै चलन, जोति गये दीप न जराओ॥