"स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से / गोपालदास "नीरज"" के अवतरणों में अंतर
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=गोपालदास "नीरज" | |रचनाकार=गोपालदास "नीरज" | ||
|संग्रह=कारवां गुजर गया / गोपालदास "नीरज" | |संग्रह=कारवां गुजर गया / गोपालदास "नीरज" | ||
− | }} | + | }} |
+ | {{KKPrasiddhRachna}} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से | स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से | ||
− | |||
लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से | लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से | ||
− | |||
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे। | और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे। | ||
− | |||
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे। | कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे। | ||
− | |||
नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई | नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई | ||
− | |||
पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई | पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई | ||
− | + | पात-पात झर गए कि शाख़-शाख़ जल गई | |
− | पात-पात झर | + | |
− | + | ||
चाह तो निकल सकी न पर उमर निकल गई | चाह तो निकल सकी न पर उमर निकल गई | ||
गीत अश्क बन गए छंद हो दफन गए | गीत अश्क बन गए छंद हो दफन गए | ||
− | + | साथ के सभी दिऐ धुआँ पहन पहन गए | |
− | साथ के सभी दिऐ धुआँ पहन पहन | + | |
− | + | ||
और हम झुके-झुके मोड़ पर रुके-रुके | और हम झुके-झुके मोड़ पर रुके-रुके | ||
− | |||
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे। | उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे। | ||
− | |||
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे। | कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे। | ||
− | |||
क्या शबाब था कि फूल-फूल प्यार कर उठा | क्या शबाब था कि फूल-फूल प्यार कर उठा | ||
− | |||
क्या जमाल था कि देख आइना मचल उठा | क्या जमाल था कि देख आइना मचल उठा | ||
− | |||
इस तरफ़ जमीन और आसमाँ उधर उठा | इस तरफ़ जमीन और आसमाँ उधर उठा | ||
− | |||
थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा | थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा | ||
एक दिन मगर यहाँ ऐसी कुछ हवा चली | एक दिन मगर यहाँ ऐसी कुछ हवा चली | ||
− | + | लुट गई कली-कली कि घुट गई गली-गली | |
− | लुट | + | |
− | + | ||
और हम लुटे-लुटे वक्त से पिटे-पिटे | और हम लुटे-लुटे वक्त से पिटे-पिटे | ||
− | |||
साँस की शराब का खुमार देखते रहे। | साँस की शराब का खुमार देखते रहे। | ||
− | |||
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे। | कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे। | ||
हाथ थे मिले कि जुल्फ चाँद की सँवार दूँ | हाथ थे मिले कि जुल्फ चाँद की सँवार दूँ | ||
− | |||
होठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूँ | होठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूँ | ||
− | |||
दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूँ | दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूँ | ||
− | |||
और साँस यूँ कि स्वर्ग भूमी पर उतार दूँ | और साँस यूँ कि स्वर्ग भूमी पर उतार दूँ | ||
हो सका न कुछ मगर शाम बन गई सहर | हो सका न कुछ मगर शाम बन गई सहर | ||
− | + | वह उठी लहर कि ढह गये किले बिखर-बिखर | |
− | वह उठी लहर कि ढह गये किले | + | और हम डरे-डरे नीर नैन में भरे |
− | + | ||
− | और हम डरे-डरे नीर | + | |
− | + | ||
ओढ़कर कफ़न पड़े मज़ार देखते रहे। | ओढ़कर कफ़न पड़े मज़ार देखते रहे। | ||
− | |||
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे। | कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे। | ||
− | + | माँग भर चली कि एक जब नई-नई किरन | |
− | माँग भर चली कि एक जब नई नई किरन | + | |
− | + | ||
ढोलकें धुमुक उठीं ठुमक उठे चरन-चरन | ढोलकें धुमुक उठीं ठुमक उठे चरन-चरन | ||
− | |||
शोर मच गया कि लो चली दुल्हन चली दुल्हन | शोर मच गया कि लो चली दुल्हन चली दुल्हन | ||
− | |||
गाँव सब उमड़ पड़ा बहक उठे नयन-नयन | गाँव सब उमड़ पड़ा बहक उठे नयन-नयन | ||
− | पर तभी ज़हर भरी | + | पर तभी ज़हर भरी गाज़ एक वह गिरी |
− | + | ||
पुँछ गया सिंदूर तार-तार हुई चूनरी | पुँछ गया सिंदूर तार-तार हुई चूनरी | ||
− | |||
और हम अजान से दूर के मकान से | और हम अजान से दूर के मकान से | ||
− | |||
पालकी लिये हुए कहार देखते रहे। | पालकी लिये हुए कहार देखते रहे। | ||
− | |||
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे। | कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे। | ||
− | |||
</poem> | </poem> |
15:33, 8 अगस्त 2014 के समय का अवतरण
स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से
लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।
नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई
पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई
पात-पात झर गए कि शाख़-शाख़ जल गई
चाह तो निकल सकी न पर उमर निकल गई
गीत अश्क बन गए छंद हो दफन गए
साथ के सभी दिऐ धुआँ पहन पहन गए
और हम झुके-झुके मोड़ पर रुके-रुके
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।
क्या शबाब था कि फूल-फूल प्यार कर उठा
क्या जमाल था कि देख आइना मचल उठा
इस तरफ़ जमीन और आसमाँ उधर उठा
थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा
एक दिन मगर यहाँ ऐसी कुछ हवा चली
लुट गई कली-कली कि घुट गई गली-गली
और हम लुटे-लुटे वक्त से पिटे-पिटे
साँस की शराब का खुमार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।
हाथ थे मिले कि जुल्फ चाँद की सँवार दूँ
होठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूँ
दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूँ
और साँस यूँ कि स्वर्ग भूमी पर उतार दूँ
हो सका न कुछ मगर शाम बन गई सहर
वह उठी लहर कि ढह गये किले बिखर-बिखर
और हम डरे-डरे नीर नैन में भरे
ओढ़कर कफ़न पड़े मज़ार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।
माँग भर चली कि एक जब नई-नई किरन
ढोलकें धुमुक उठीं ठुमक उठे चरन-चरन
शोर मच गया कि लो चली दुल्हन चली दुल्हन
गाँव सब उमड़ पड़ा बहक उठे नयन-नयन
पर तभी ज़हर भरी गाज़ एक वह गिरी
पुँछ गया सिंदूर तार-तार हुई चूनरी
और हम अजान से दूर के मकान से
पालकी लिये हुए कहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।