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"गीत गुणनफल के / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर

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रंग उड़े काग़ज़ी कमल के
 
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उम्र भर जले चिराग-से
 
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13:05, 11 अगस्त 2014 के समय का अवतरण

गीत गुणनफल के
सम्बोधन कल के
डूब गए धार में फिसल के

मछली थी बाँह की प्रिया
क्यों मन को तामसी किया
सपनों के पंख सीपिया
रह गए कगार पर मचल के

नीर में छपाक-सी हुई
पीर खुल गई कसी हुई
ज़िन्दगी मज़ाक-सी हुई
रंग उड़े काग़ज़ी कमल के

खेल कर क्षणिक पराग से
उम्र भर जले चिराग-से
भीतरी अदृश्य आग के
और घने हो गए धुँधलके