Changes

बरसात को इतवार / रमेश रंजक

15 bytes removed, 07:42, 11 अगस्त 2014
<poem>
अब चले आओ निमोही द्वार
पानी थम गया है
मिल गया बरसात को इतवार
पानी थम गया है
साथ इन चंचल हवाओं के
पंख फैला कर दिशाओं के
उड़ न जाए मिलन का त्यौहार
पानी थम गया है
धमनियों में स्नेह के बादल
कर रहे ख़ामोश कोलाहल
पलक पर हैं प्यास के अंगार
पानी थम गया है
धूप गोरी छोड़ कर अम्बर
आ गई छत की मुण्डेरी पर
आइना धर कर रही शृंगार
पानी थम गया है
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,239
edits