भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अश्रु आचमन / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |अनुवादक= |संग्रह=किरण क...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:08, 11 अगस्त 2014 के समय का अवतरण
अगर शपथ की परिधि न होती
मेरी पीर
कथा हो जाती
पिंजरे का पंछी भर रहना
तो मुझको स्वीकार नहीं था
परवशता ने झुका दिया सिर
क्योंकि अन्य उपचार नहीं था
अगर तोड़ देता ये बन्धन
जग के लिए
प्रथा हो जाती
दर्द बिना जीना क्या जीना
दर्द बिना जीवन मरुथल है
दर्द अकेलेपन का स्वर है
दर्द स्नेह का गंगाजल है
प्यास, अश्रु आचमन न करती
तो हर सास
वृथा हो जाती