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"अश्रु आचमन / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर

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23:08, 11 अगस्त 2014 के समय का अवतरण

अगर शपथ की परिधि न होती
मेरी पीर
कथा हो जाती

पिंजरे का पंछी भर रहना
तो मुझको स्वीकार नहीं था
परवशता ने झुका दिया सिर
क्योंकि अन्य उपचार नहीं था

अगर तोड़ देता ये बन्धन
जग के लिए
प्रथा हो जाती

दर्द बिना जीना क्या जीना
दर्द बिना जीवन मरुथल है
दर्द अकेलेपन का स्वर है
दर्द स्नेह का गंगाजल है

प्यास, अश्रु आचमन न करती
तो हर सास
वृथा हो जाती