"गलत सोचा / ममता व्यास" के अवतरणों में अंतर
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− | जेलर के हर कोड़े | + | जेलर के हर कोड़े पर निर्दोष कैदी ने सोचा |
− | बस अब ये | + | बस अब ये आख़िरी होगा, गलत सोचा। |
− | पिंजरे में कैद चिड़ियाँ ने जख्मी चोंच | + | पिंजरे में कैद चिड़ियाँ ने जख्मी चोंच से |
− | + | फिर एक बार पिंजरा काटा, सोचा | |
− | बस अब पिंजरा टूटा, गलत | + | बस अब पिंजरा टूटा, गलत सोचा। |
उसके अनगिनत झूठ सुनकर सोचा | उसके अनगिनत झूठ सुनकर सोचा | ||
− | बस अब ये झूठ आखरी होगा, गलत | + | बस अब ये झूठ आखरी होगा, गलत सोचा। |
मन्नत के धागे बांधते समय सोचा | मन्नत के धागे बांधते समय सोचा | ||
− | पत्थर का देवता अनगिनत लाल धागों | + | पत्थर का देवता अनगिनत लाल धागों में |
− | + | हरा धागा पहचान लेगा, गलत सोचा | |
− | बरसों तक पुराने घर को अपना मानते रहे, | + | बरसों तक पुराने घर को अपना मानते रहे, सोचा |
− | भला एक रस्म से घर छूटता है क्या, गलत | + | भला एक रस्म से घर छूटता है क्या, गलत सोचा। |
− | फिर बरसों तक नये घर को अपना कहते रहे | + | फिर बरसों तक नये घर को अपना कहते रहे सोचा |
− | एक दिन ये नयाघर "अपना घर"होगा गलत | + | एक दिन ये नयाघर "अपना घर" होगा गलत सोचा। |
एक ठूंठ को बड़े प्रेम से बरसों सींचा किये, सोचा | एक ठूंठ को बड़े प्रेम से बरसों सींचा किये, सोचा | ||
− | एक दिन हरे पत्ते उगेंगे, गलत | + | एक दिन हरे पत्ते उगेंगे, गलत सोचा। |
− | प्रेम बीज बोते रहे, प्रेम लहराएगा हरा होकर,सोचा | + | प्रेम बीज बोते रहे, प्रेम लहराएगा हरा होकर, सोचा |
− | सौ गुनी फसल होगी अबकी, गलत | + | सौ गुनी फसल होगी अबकी, गलत सोचा। |
दर्द के बीज कभी नहीं रोपें, सोचा | दर्द के बीज कभी नहीं रोपें, सोचा | ||
− | बिन बोये कुछ नहीं उगता, गलत | + | बिन बोये कुछ नहीं उगता, गलत सोचा। |
बजते झुनझुने को तोड़ कर फिर जोड़ने से | बजते झुनझुने को तोड़ कर फिर जोड़ने से | ||
− | वो फिर से बज उठेगा ये तुमने गलत | + | वो फिर से बज उठेगा ये तुमने गलत सोचा। |
देर से घर आने वालो ने रस्ते में रुक कर सोचा | देर से घर आने वालो ने रस्ते में रुक कर सोचा | ||
− | घर कहाँ जायेगा | + | घर कहाँ जायेगा वहीं मिलेगा, गलत सोचा। |
बहती नदी, रोती आखें छोड़ गए, सोचा | बहती नदी, रोती आखें छोड़ गए, सोचा | ||
वापस आने पर वहीं मिलेगी गलत सोचा | वापस आने पर वहीं मिलेगी गलत सोचा | ||
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07:56, 13 अगस्त 2014 के समय का अवतरण
जेलर के हर कोड़े पर निर्दोष कैदी ने सोचा
बस अब ये आख़िरी होगा, गलत सोचा।
पिंजरे में कैद चिड़ियाँ ने जख्मी चोंच से
फिर एक बार पिंजरा काटा, सोचा
बस अब पिंजरा टूटा, गलत सोचा।
उसके अनगिनत झूठ सुनकर सोचा
बस अब ये झूठ आखरी होगा, गलत सोचा।
मन्नत के धागे बांधते समय सोचा
पत्थर का देवता अनगिनत लाल धागों में
हरा धागा पहचान लेगा, गलत सोचा
बरसों तक पुराने घर को अपना मानते रहे, सोचा
भला एक रस्म से घर छूटता है क्या, गलत सोचा।
फिर बरसों तक नये घर को अपना कहते रहे सोचा
एक दिन ये नयाघर "अपना घर" होगा गलत सोचा।
एक ठूंठ को बड़े प्रेम से बरसों सींचा किये, सोचा
एक दिन हरे पत्ते उगेंगे, गलत सोचा।
प्रेम बीज बोते रहे, प्रेम लहराएगा हरा होकर, सोचा
सौ गुनी फसल होगी अबकी, गलत सोचा।
दर्द के बीज कभी नहीं रोपें, सोचा
बिन बोये कुछ नहीं उगता, गलत सोचा।
बजते झुनझुने को तोड़ कर फिर जोड़ने से
वो फिर से बज उठेगा ये तुमने गलत सोचा।
देर से घर आने वालो ने रस्ते में रुक कर सोचा
घर कहाँ जायेगा वहीं मिलेगा, गलत सोचा।
बहती नदी, रोती आखें छोड़ गए, सोचा
वापस आने पर वहीं मिलेगी गलत सोचा