भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पता है, त(लाश)-7 / पीयूष दईया" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पीयूष दईया |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:10, 28 अगस्त 2014 के समय का अवतरण

कक्ष में कोख
बेजान कोई
   
बूझ सका न बुझ ने में पा सका
बुझे बिना

लगता है, नाल वही
लगता है, शरीर वही
लगता है, जान वही

अभी, अब नहीं

सफ़ेदा

दूसरी ओर से