भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नर्क का तर्क / काका हाथरसी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=
+
|रचनाकार=काका हाथरसी
 
|अनुवादक=
 
|अनुवादक=
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=

11:34, 18 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण

 
स्वर्ग-नर्क के बीच की चटख गई दीवार।
कौन कराए रिपेयर इस पर थी तकरार॥

इस पर थी तकरार, स्वर्गवासी थे सहमत।
आधा-आधा खर्चा दो हो जाए मरम्मत॥

नर्केश्वर ने कहा – गलत है नीति तुम्हारी।
रंचमात्र भी नहीं हमारी जिम्मेदारी॥


जिम्मेदारी से बचें कर्महीन डरपोक।
मान जाउ नहिं कोर्ट में दावा देंगे ठोंक॥

दावा देंगे ठोंक? नरक मेनेजर बोले।
स्वर्गलोक के नर नारी होते हैं भोले॥

मान लिया दावा तो आप ज़रूर करोगे।
सब वकील हैं यहाँ, केस किस तरह लड़ोगे॥