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<poem>आईना सामने रक्खोगे तो याद आऊंगा  
अपनी ज़ुल्फ़ों को सँवारोगे तो याद आऊंगा
जब किसी फूल पे ग़श२ होती हुई बुलबुल को
सह्ने-गुल्ज़ार में देखोगे तो याद आऊंगा
 
</poem>
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