"प्यार में / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर
Kumar mukul (चर्चा | योगदान) (सियारों और पत्थरों को हमने हरियाली और प्रेम के गीत सुनाये) |
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1 | 1 | ||
− | |||
प्यार में महानगरों को छोडा हमने | प्यार में महानगरों को छोडा हमने | ||
− | |||
और कस्बों की राह ली | और कस्बों की राह ली | ||
− | + | अमावस को मिले हम और | |
− | अमावस को मिले हम | + | |
− | + | ||
आंखों के तारों की रोशनी में | आंखों के तारों की रोशनी में | ||
− | |||
नाद के चबूतरे पर बैठे हमने | नाद के चबूतरे पर बैठे हमने | ||
− | |||
दूज के चांद का इंतजार किया | दूज के चांद का इंतजार किया | ||
− | |||
और भैंस की सींग के बीच से | और भैंस की सींग के बीच से | ||
− | |||
पश्चिमी कोने पर डूबते चांद को देखा | पश्चिमी कोने पर डूबते चांद को देखा | ||
− | + | हमने सुख की तरह | |
− | हमने | + | |
− | + | ||
एक दूसरे का हाथ हाथेां में लिया | एक दूसरे का हाथ हाथेां में लिया | ||
− | |||
और परवाह नही की बटोहियों की | और परवाह नही की बटोहियों की | ||
− | |||
2 | 2 | ||
− | + | कुछ ज्यादा ही | |
− | कुछ ज्यादा ही | + | |
− | + | ||
बर्तन मंजे प्यार में | बर्तन मंजे प्यार में | ||
− | |||
पानी कुछ ज्यादा ही पिया हमने | पानी कुछ ज्यादा ही पिया हमने | ||
− | |||
कई कई बार बुहारा घर को | कई कई बार बुहारा घर को | ||
− | |||
सबेरे जगे और देर से सोये हम | सबेरे जगे और देर से सोये हम | ||
− | + | एक दूसरे को मार दुनिया जहान के | |
− | एक दूसरे को मार दुनिया जहान के | + | |
− | + | ||
किस्से सुनाये हमने | किस्से सुनाये हमने | ||
− | |||
और इतना हंसे | और इतना हंसे | ||
− | |||
कि आस पास | कि आस पास | ||
− | |||
प्यार के सुराग में बैठे लोग | प्यार के सुराग में बैठे लोग | ||
− | |||
भाग गये बोर होकर | भाग गये बोर होकर | ||
− | |||
3 | 3 | ||
− | |||
प्यार में हमने | प्यार में हमने | ||
− | |||
सबसे उंची चोटी चढी पहाड की | सबसे उंची चोटी चढी पहाड की | ||
− | |||
वहां हमने देखा कि पेड | वहां हमने देखा कि पेड | ||
− | + | कटकर शहर की राह ले रहे थे | |
− | कटकर | + | |
− | + | ||
वहां हमें दो सियार मिले | वहां हमें दो सियार मिले | ||
− | |||
सियारों और पत्थरों को हमने | सियारों और पत्थरों को हमने | ||
− | |||
हरियाली और प्रेम के गीत सुनाये | हरियाली और प्रेम के गीत सुनाये | ||
− | |||
और धीरे धीरे | और धीरे धीरे | ||
− | |||
उतर आये तलहटियों में। | उतर आये तलहटियों में। | ||
− | |||
1997 | 1997 | ||
+ | </poem> |
00:21, 30 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण
1
प्यार में महानगरों को छोडा हमने
और कस्बों की राह ली
अमावस को मिले हम और
आंखों के तारों की रोशनी में
नाद के चबूतरे पर बैठे हमने
दूज के चांद का इंतजार किया
और भैंस की सींग के बीच से
पश्चिमी कोने पर डूबते चांद को देखा
हमने सुख की तरह
एक दूसरे का हाथ हाथेां में लिया
और परवाह नही की बटोहियों की
2
कुछ ज्यादा ही
बर्तन मंजे प्यार में
पानी कुछ ज्यादा ही पिया हमने
कई कई बार बुहारा घर को
सबेरे जगे और देर से सोये हम
एक दूसरे को मार दुनिया जहान के
किस्से सुनाये हमने
और इतना हंसे
कि आस पास
प्यार के सुराग में बैठे लोग
भाग गये बोर होकर
3
प्यार में हमने
सबसे उंची चोटी चढी पहाड की
वहां हमने देखा कि पेड
कटकर शहर की राह ले रहे थे
वहां हमें दो सियार मिले
सियारों और पत्थरों को हमने
हरियाली और प्रेम के गीत सुनाये
और धीरे धीरे
उतर आये तलहटियों में।
1997