"मुन्नन पढ़ रहा है / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर
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सुबह के छह बज रहे हैं और कुहरा नहीं है आज | सुबह के छह बज रहे हैं और कुहरा नहीं है आज | ||
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कांसे की थाली सा मंदप्रभ सूर्य | कांसे की थाली सा मंदप्रभ सूर्य | ||
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उूपर आ रहा है | उूपर आ रहा है | ||
− | + | सुषुम ठंड एक ताकत की तरह | |
− | सुषुम ठंड | + | |
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मेरे भीतर प्रवेश कर रही है | मेरे भीतर प्रवेश कर रही है | ||
− | + | एक गुलाब है जो पडोस की दीवार के पास | |
− | एक गुलाब है | + | सिर उचकाकर ताक रहा है |
− | + | एक नन्हीं बालिका झांक रही है जिज्ञासु आंखों से | |
− | सिर उचकाकर | + | |
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− | एक नन्हीं बालिका | + | |
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सामने सीढियों पर बैठा रोटियां तोड रहा है छोटू लाल | सामने सीढियों पर बैठा रोटियां तोड रहा है छोटू लाल | ||
+ | और अखबार सादे हैं आज | ||
− | + | इतना लिखते-लिखते चमकने लगा है सूर्य | |
− | + | डॉटपेन की छाया उभरने लगी है कॉपी पर | |
− | + | छत से लटकते पंखे पर एक गौरैया आ बैठी है | |
− | इतना लिखते-लिखते | + | एक पंडुक आ बैठा है एंटीना पर |
− | + | पडोस के खाली भूखंड पर दो बिल्लियां | |
− | डॉटपेन की छाया | + | एक अधमरे चूहे के साथ खेल रही हैं |
− | + | एक चील उडती जा रही है सूरज की ओर | |
− | छत से लटकते पंखे पर | + | मानो ढंग लेगी उसे |
− | + | उसके पंजे में कुछ है चूहा-मेढक या और कुछ | |
− | एक पंडुक आ बैठा है | + | उसके पीछे कौवे भी हैं दो-चार |
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− | पडोस के खाली भूखंड पर | + | |
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− | एक अधमरे चूहे के साथ | + | |
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+ | खत्म तो नहीं हो जाएगी नस्ल आदमी की | ||
+ | उधर मुन्नन पढ रहा है जोर-जोर से | ||
+ | कि उर्जा का विनाश नहीं होता ...। | ||
1996 | 1996 | ||
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00:31, 30 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण
सुबह के छह बज रहे हैं और कुहरा नहीं है आज
कांसे की थाली सा मंदप्रभ सूर्य
उूपर आ रहा है
सुषुम ठंड एक ताकत की तरह
मेरे भीतर प्रवेश कर रही है
एक गुलाब है जो पडोस की दीवार के पास
सिर उचकाकर ताक रहा है
एक नन्हीं बालिका झांक रही है जिज्ञासु आंखों से
सामने सीढियों पर बैठा रोटियां तोड रहा है छोटू लाल
और अखबार सादे हैं आज
इतना लिखते-लिखते चमकने लगा है सूर्य
डॉटपेन की छाया उभरने लगी है कॉपी पर
छत से लटकते पंखे पर एक गौरैया आ बैठी है
एक पंडुक आ बैठा है एंटीना पर
पडोस के खाली भूखंड पर दो बिल्लियां
एक अधमरे चूहे के साथ खेल रही हैं
एक चील उडती जा रही है सूरज की ओर
मानो ढंग लेगी उसे
उसके पंजे में कुछ है चूहा-मेढक या और कुछ
उसके पीछे कौवे भी हैं दो-चार
इधर चिंतित हैं कविगण कि चीते की तरह
खत्म तो नहीं हो जाएगी नस्ल आदमी की
उधर मुन्नन पढ रहा है जोर-जोर से
कि उर्जा का विनाश नहीं होता ...।
1996