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"किसी पल के इंतज़ार में / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर

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('विवेकानंद को नहीं देखा मैंने पछाड खाते समुद्र को भ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
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विवेकानंद को नहीं देखा मैंने
 
विवेकानंद को नहीं देखा मैंने
 
 
पछाड खाते समुद्र को भी नहीं
 
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हिमालय को देखा है
 
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पर दूर से
 
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पर नदियां देखी हैं मैंने
 
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नदियों की सपनीली आंखें देखी हैं
 
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उनमें देखें हैं सपने समंदर के
 
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और कछारों में
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अस्थि‍यां हिमालय की
 
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क्या बादल एक दिन हिमालय को
 
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डुबो नहीं देंगे समुद्र में
 
डुबो नहीं देंगे समुद्र में
 
 
फिर नदियों के पास क्या काम रह जाएगा
 
फिर नदियों के पास क्या काम रह जाएगा
 
 
निठल्ली, मर नहीं जाएंगी वे
 
निठल्ली, मर नहीं जाएंगी वे
 
 
फिर कैसे पछाड खाएगा समुद्र
 
फिर कैसे पछाड खाएगा समुद्र
 
 
वैसे विराट मृत समय में क्या करेंगे हम ।
 
वैसे विराट मृत समय में क्या करेंगे हम ।
 
  
 
गर्भ देखेंगे धरती का
 
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शायद वहां हों ज्वालामुखी
 
शायद वहां हों ज्वालामुखी
 
 
किसी पल के इंतजार में ।
 
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00:32, 30 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण

विवेकानंद को नहीं देखा मैंने
पछाड खाते समुद्र को भी नहीं
हिमालय को देखा है
पर दूर से

पर नदियां देखी हैं मैंने
नदियों की सपनीली आंखें देखी हैं
उनमें देखें हैं सपने समंदर के
और कछारों में
अस्थि‍यां हिमालय की

क्या बादल एक दिन हिमालय को
डुबो नहीं देंगे समुद्र में
फिर नदियों के पास क्या काम रह जाएगा
निठल्ली, मर नहीं जाएंगी वे
फिर कैसे पछाड खाएगा समुद्र
वैसे विराट मृत समय में क्या करेंगे हम ।

गर्भ देखेंगे धरती का
शायद वहां हों ज्वालामुखी
किसी पल के इंतजार में ।

1993