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"समय की दराँत पर / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर
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समय की दरांत पर | समय की दरांत पर | ||
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बजखते जख्म सा | बजखते जख्म सा | ||
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गुजर रहा है विश्व | गुजर रहा है विश्व | ||
− | + | फटे हाेंठ बिसूरता हमारा मुल्क भी | |
− | फटे हाेंठ बिसूरता | + | निकला है अभी अभी |
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वर्तमान के कंधों | वर्तमान के कंधों | ||
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अतीत की लाशें लाद | अतीत की लाशें लाद | ||
− | + | उन्हें जडी सुंघा रहा है धर्म | |
− | उन्हें | + | और जलती चीखों से अंटे पडे हैं राजपथ |
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गलियों से निकलती पुलीस | गलियों से निकलती पुलीस | ||
+ | लगा रही कर्फ्यू दुर्गंध के भभकों पर | ||
− | + | जनक्रंदन की लहरों पर | |
− | + | कलरव करते चले आ रहे राजनेता | |
− | + | जख्मों से रिसता रक्त चख रहे | |
− | जनक्रंदन की लहरों पर | + | बतला रहे कि खालिस मुफलिसों का है |
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− | कलरव करते | + | |
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− | जख्मों से रिसता रक्त | + | |
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चुल्लू भर अपने ही रक्त में डूबकर | चुल्लू भर अपने ही रक्त में डूबकर | ||
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दम तोड रहा है कवि | दम तोड रहा है कवि | ||
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कि उसकी छटपटाहटों के बुलबुले ही | कि उसकी छटपटाहटों के बुलबुले ही | ||
+ | रह जाएंगे हमारी विरासतें । | ||
− | + | 1991, '''रघुवीर सहाय की मौत पर''' | |
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− | 1991, रघुवीर सहाय की मौत पर | + |
07:08, 30 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण
समय की दरांत पर
बजखते जख्म सा
गुजर रहा है विश्व
फटे हाेंठ बिसूरता हमारा मुल्क भी
निकला है अभी अभी
वर्तमान के कंधों
अतीत की लाशें लाद
उन्हें जडी सुंघा रहा है धर्म
और जलती चीखों से अंटे पडे हैं राजपथ
गलियों से निकलती पुलीस
लगा रही कर्फ्यू दुर्गंध के भभकों पर
जनक्रंदन की लहरों पर
कलरव करते चले आ रहे राजनेता
जख्मों से रिसता रक्त चख रहे
बतला रहे कि खालिस मुफलिसों का है
चुल्लू भर अपने ही रक्त में डूबकर
दम तोड रहा है कवि
कि उसकी छटपटाहटों के बुलबुले ही
रह जाएंगे हमारी विरासतें ।
1991, रघुवीर सहाय की मौत पर