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"पितरिया लोटा / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर

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(किताबों से अंटे उस कमरे पर भारी पड रह था वह लोटा)
 
 
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बैठते ही पानी के लिए
 
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पूछते हैं अरूण कमल
 
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देखता हूं
 
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बडा-सा
 
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पितरिया लोटा उठाए
 
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अरे रे आपके हाथ में यह
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लोटा है या पृथ्वी है पूरी
 
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अपनी सुगंध अपनी नदी
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महानगर की इस कोठली में
 
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सूर्य की तरह उद्भासित होता
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यह लोटा
 
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इसका भार उठाए
 
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कैसे लिख लेते हैं आप
 
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ऐसी सुषुम गुनगुनी कविताएं
 
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फिर ग्लास से ढाल पिया जल
 
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तो पितरैला स्वाद उसका
 
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चमकने लगा नसों में मेरी
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किताबों से अंटे उस कमरे पर
 
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भारी पड रह था वह लोटा
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सो अदबदाकर उलट दिया उसे
 
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अह रह क्या फैल गया कमरे में
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सुगट्टू भोरे-भोर
 
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डाल से चुए सेनुरिया आम
 
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हाथ मीजने के लिए
 
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खेतो से ली गयी मिट्टी
 
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और यह जल सोनभद्र का
 
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इसमें दाल
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अच्छी पकेगी ।
 
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07:09, 30 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण

बैठते ही पानी के लिए
पूछते हैं अरूण कमल
देखता हूं
बडा-सा
पितरिया लोटा उठाए
चले आ रहे हैं

अरे रे आपके हाथ में यह
लोटा है या पृथ्वी है पूरी
अपनी सुगंध अपनी नदी
अपने तेज के साथ

महानगर की इस कोठली में
सूर्य की तरह उद्भासित होता
यह लोटा
इसका भार उठाए
कैसे लिख लेते हैं आप
ऐसी सुषुम गुनगुनी कविताएं

फिर ग्लास से ढाल पिया जल
तो पितरैला स्वाद उसका
चमकने लगा नसों में मेरी
किताबों से अंटे उस कमरे पर
भारी पड रह था वह लोटा
सो अदबदाकर उलट दिया उसे
अह रह क्या फैल गया कमरे में
सुगट्टू भोरे-भोर
डाल से चुए सेनुरिया आम
हाथ मीजने के लिए
खेतो से ली गयी मिट्टी
और यह जल सोनभद्र का

इसमें दाल
अच्छी पकेगी ।
1991