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"बंसी के बस स्याम भये री! / स्वामी सनातनदेव" के अवतरणों में अंतर
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कहा करें, कित धरें चोरि यह, पियहिं फोरि बहुदुःख दिये री॥3॥ | कहा करें, कित धरें चोरि यह, पियहिं फोरि बहुदुःख दिये री॥3॥ | ||
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राग विभास, तीन ताल 26.7.1974
बंसी के बस स्याम भये री!
कहा उनहिं अब परी हमारी, ताही के अब चरन गहे री!
कर-पल्लव पै सयन करत सो, अधर-सुधा पी हिये दहै री!
कबहुँ न ताहि करहिं हरि न्यारी, वाहाके वे रंग रये री!॥1॥
वाके बल ही धेनु चरावहिं, खग-मृग सब ही स्वबस किये री!
बालवृन्द सब सुनहिं चावसों, हमकों तो वे विसरि गये री!॥2॥
स्वकुल जराय जरावत हमकों, सब विधि याने सूल बये री!
कहा करें, कित धरें चोरि यह, पियहिं फोरि बहुदुःख दिये री॥3॥