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"सिर्फ़ एक दिन का जीवन / राजकुमार कुंभज" के अवतरणों में अंतर
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20:22, 3 दिसम्बर 2014 के समय का अवतरण
एक दिन मैं ऎनक भूल जाता हूँ
एक दिन मैं भूल जाता हूँ अपनी दो आँखें
और एक दिन तो हद ही हो जाती है सचमुच
कि मैं पतलून पहनना ही भूल जाता हूँ
ऎसा सिरे से होना चाहिए मगर नहीं होता है
एक दिन मैं भूल जाना चाहता हूँ सरकार
एक दिन मैं भूल जाना चाहता हूँ कानून-क़ायदे सब
एक दिन मैं मूत देना चाहता हूँ सरे-बाज़ार
मैं सिर्फ़ एक दिन की छूट चाहता हूँ
और सिर्फ़ एक दिन का जीवन