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"गीत मेरे / हरिवंशराय बच्‍चन" के अवतरणों में अंतर

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गीत मेरे, देहरी का दीप-सा बन।
 
गीत मेरे, देहरी का दीप-सा बन।
 
 
एक दुनिया है हृदय में, मानता हूँ,
 
एक दुनिया है हृदय में, मानता हूँ,
 
 
वह घिरी तम से, इसे भी जानता हूँ,
 
वह घिरी तम से, इसे भी जानता हूँ,
 
 
छा रहा है किंतु बाहर भी तिमिर-घन,
 
छा रहा है किंतु बाहर भी तिमिर-घन,
 
 
गीत मेरे, देहरी का द‍ीप-सा बन।
 
गीत मेरे, देहरी का द‍ीप-सा बन।
 
 
प्राण की लौ से तुझे जिस काल बारुँ,
 
प्राण की लौ से तुझे जिस काल बारुँ,
 
 
और अपने कंठ पर तुझको सँवारूँ,
 
और अपने कंठ पर तुझको सँवारूँ,
 
 
कह उठे संसार, आया ज्‍योति का क्षण,
 
कह उठे संसार, आया ज्‍योति का क्षण,
 
 
गीत मेरे, देहरी का द‍ीप-सा बन।
 
गीत मेरे, देहरी का द‍ीप-सा बन।
 
 
दूर कर मुझमें भरी तू कालिमा जब,
 
दूर कर मुझमें भरी तू कालिमा जब,
 
 
फैल जाए विश्‍व में भी लालिमा तब,
 
फैल जाए विश्‍व में भी लालिमा तब,
 
 
जानता सीमा नहीं है अग्नि का कण,
 
जानता सीमा नहीं है अग्नि का कण,
 
 
गीत मेरे, देहरी का द‍ीप-सा बन।
 
गीत मेरे, देहरी का द‍ीप-सा बन।
 
 
जग विभामय न तो काली रात मेरी,
 
जग विभामय न तो काली रात मेरी,
 
 
मैं विभामय तो नहीं जगती अँधेरी,
 
मैं विभामय तो नहीं जगती अँधेरी,
 
 
यह रहे विश्‍वास मेरा यह रहे प्रण,
 
यह रहे विश्‍वास मेरा यह रहे प्रण,
 
 
गीत मेरे, देहरी का द‍ीप-सा बन।
 
गीत मेरे, देहरी का द‍ीप-सा बन।
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14:15, 4 दिसम्बर 2014 के समय का अवतरण

गीत मेरे, देहरी का दीप-सा बन।
एक दुनिया है हृदय में, मानता हूँ,
वह घिरी तम से, इसे भी जानता हूँ,
छा रहा है किंतु बाहर भी तिमिर-घन,
गीत मेरे, देहरी का द‍ीप-सा बन।
प्राण की लौ से तुझे जिस काल बारुँ,
और अपने कंठ पर तुझको सँवारूँ,
कह उठे संसार, आया ज्‍योति का क्षण,
गीत मेरे, देहरी का द‍ीप-सा बन।
दूर कर मुझमें भरी तू कालिमा जब,
फैल जाए विश्‍व में भी लालिमा तब,
जानता सीमा नहीं है अग्नि का कण,
गीत मेरे, देहरी का द‍ीप-सा बन।
जग विभामय न तो काली रात मेरी,
मैं विभामय तो नहीं जगती अँधेरी,
यह रहे विश्‍वास मेरा यह रहे प्रण,
गीत मेरे, देहरी का द‍ीप-सा बन।