भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तुम्हारा प्यार / किशोर काबरा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह = मै एक दर्पण हूँ / किशोर काबरा | |संग्रह = मै एक दर्पण हूँ / किशोर काबरा | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
− | मोर पंखी आँख में | + | <poem> |
− | दुबका हुआ | + | मोर पंखी आँख में |
− | शिशु सा तुम्हारा प्यार | + | दुबका हुआ |
− | कुछ ऐसा हठीला हो गया है | + | शिशु सा तुम्हारा प्यार |
− | दृष्टि का आँचल पकड़कर | + | कुछ ऐसा हठीला हो गया है |
− | मचलता है | + | दृष्टि का आँचल पकड़कर |
− | बून्द बन कर उछलता है | + | मचलता है |
− | फर्श गीला हो गया है | + | बून्द बन कर उछलता है |
− | तर्क से | + | फर्श गीला हो गया है |
− | कटता कहाँ | + | तर्क से |
− | बस, झेलता है | + | कटता कहाँ |
− | दूब के मानिन्द | + | बस, झेलता है |
− | दिन दिन फैलता है | + | दूब के मानिन्द |
− | कुछ गँठीला | + | दिन दिन फैलता है |
− | कुछ कँटीला | + | कुछ गँठीला |
− | हो गया प्यार | + | कुछ कँटीला |
+ | हो गया प्यार | ||
कुछ ऐसा हठीला हो गया है। | कुछ ऐसा हठीला हो गया है। | ||
+ | </poem> |
15:51, 4 दिसम्बर 2014 के समय का अवतरण
मोर पंखी आँख में
दुबका हुआ
शिशु सा तुम्हारा प्यार
कुछ ऐसा हठीला हो गया है
दृष्टि का आँचल पकड़कर
मचलता है
बून्द बन कर उछलता है
फर्श गीला हो गया है
तर्क से
कटता कहाँ
बस, झेलता है
दूब के मानिन्द
दिन दिन फैलता है
कुछ गँठीला
कुछ कँटीला
हो गया प्यार
कुछ ऐसा हठीला हो गया है।