भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"शब्द ब्रह्म / किशोर काबरा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
					
										
					
					| Pratishtha  (चर्चा | योगदान) | Sharda suman  (चर्चा | योगदान)  | ||
| पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
| |संग्रह = मै एक दर्पण हूँ / किशोर काबरा | |संग्रह = मै एक दर्पण हूँ / किशोर काबरा | ||
| }}   | }}   | ||
| − | + | {{KKCatKavita}} | |
| − | + | <poem> | |
| − | सम्पत्ति है,  | + | शब्द  | 
| − | पूँजी है | + | सम्पत्ति है,   | 
| − | उसे व्यर्थ मत जाने दो | + | पूँजी है | 
| − | चार की जगह दो को | + | उसे व्यर्थ मत जाने दो | 
| − | अपनी बात सुनाने दो | + | चार की जगह दो को | 
| − | जहाँ एक भी ज्यादा लगे | + | अपनी बात सुनाने दो | 
| − | वहाँ  | + | जहाँ एक भी ज्यादा लगे | 
| − | आधे से काम लो | + | वहाँ   | 
| − | जहाँ आधा भी ज्यादा लगे | + | आधे से काम लो | 
| − | वहाँ | + | जहाँ आधा भी ज्यादा लगे | 
| − | उसके आधे पर विराम लगे | + | वहाँ | 
| − | और फिर | + | उसके आधे पर विराम लगे | 
| − | संकेतों की भाषा | + | और फिर | 
| − | समझने दो लोगों को | + | संकेतों की भाषा | 
| − | फिर | + | समझने दो लोगों को | 
| − | मौन की परिभाषा | + | फिर | 
| − | समझने दो लोगों को | + | मौन की परिभाषा | 
| − | ज्यों ज्यों तुम्हारा मौन  | + | समझने दो लोगों को | 
| − | मुखर होता जाएगा | + | ज्यों ज्यों तुम्हारा मौन   | 
| − | त्यों त्यों तुम्हारा शब्द | + | मुखर होता जाएगा | 
| − | प्रखर होता जाएगा | + | त्यों त्यों तुम्हारा शब्द | 
| − | शब्द ब्रह्म है जो मौन से प्राप्त होता है | + | प्रखर होता जाएगा | 
| − | मौन में जीता है | + | शब्द ब्रह्म है जो मौन से प्राप्त होता है | 
| + | मौन में जीता है | ||
| और मौन में ही समाप्त होता है। | और मौन में ही समाप्त होता है। | ||
| + | </poem> | ||
16:01, 4 दिसम्बर 2014 के समय का अवतरण
शब्द 
सम्पत्ति है, 
पूँजी है
उसे व्यर्थ मत जाने दो
चार की जगह दो को
अपनी बात सुनाने दो
जहाँ एक भी ज्यादा लगे
वहाँ 
आधे से काम लो
जहाँ आधा भी ज्यादा लगे
वहाँ
उसके आधे पर विराम लगे
और फिर
संकेतों की भाषा
समझने दो लोगों को
फिर
मौन की परिभाषा
समझने दो लोगों को
ज्यों ज्यों तुम्हारा मौन 
मुखर होता जाएगा
त्यों त्यों तुम्हारा शब्द
प्रखर होता जाएगा
शब्द ब्रह्म है जो मौन से प्राप्त होता है
मौन में जीता है
और मौन में ही समाप्त होता है।
 
	
	

