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"महक उठा है आंगन इस खबर से / जॉन एलिया" के अवतरणों में अंतर

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मेरे मानन गुज़रा कर मेरी जान   
 
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कभी तू खुद भी अपनी रहगुज़र से  
 
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10:36, 14 दिसम्बर 2014 के समय का अवतरण

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महक उठा है आँगन इस ख़बर से
वो ख़ुशबू लौट आई है सफ़र से

जुदाई ने उसे देखा सर-ए-बाम
दरीचे पर शफ़क़ के रंग बरसे

मैं इस दीवार पर चढ़ तो गया था
उतारे कौन अब दीवार पर से

गिला है एक गली से शहर-ए-दिल की
मैं लड़ता फिर रहा हूँ शहर भर से

उसे देखे ज़माने भर का ये चाँद
हमारी चाँदनी छाए तो तरसे

मेरे मानन गुज़रा कर मेरी जान
कभी तू खुद भी अपनी रहगुज़र से