भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"यूँ न रह रह के हमें तरसाइए / साग़र निज़ामी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 18: | पंक्ति 18: | ||
ये हवा, 'साग़र' ये हल्की चाँदनी, | ये हवा, 'साग़र' ये हल्की चाँदनी, | ||
जी में आता है यहीं मर जाइए । | जी में आता है यहीं मर जाइए । | ||
− | |||
{{KKMeaning}} | {{KKMeaning}} | ||
+ | </poem> |
14:43, 16 जनवरी 2015 का अवतरण
यूँ न रह रह के हमें तरसाइए ।
आइए, आ जाइए, आ जाइए ।
फिर वही दानिश्ता<ref>जान-बूझकर</ref> ठोकर खाइए,
फिर मिरे आग़ोश में गिर जाइए ।
मेरी दुनिया मुन्तज़िर है आपकी,
अपनी दुनिया छोड़ कर आ जाइए ।
ये हवा, 'साग़र' ये हल्की चाँदनी,
जी में आता है यहीं मर जाइए ।
शब्दार्थ
<references/>