भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अल्लाह ख़ता क्या है ग़रीबों की बता दे / साग़र निज़ामी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सागर निज़ामी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार= | + | |रचनाकार=साग़र निज़ामी |
|अनुवादक= | |अनुवादक= | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
{{KKCatGhazal}} | {{KKCatGhazal}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | अल्लाह ख़ता क्या है ग़रीबों की बता दे | + | अल्लाह ख़ता क्या है ग़रीबों की बता दे, |
− | क़िस्मत के अन्धेरे में नई शमा जला | + | क़िस्मत के अन्धेरे में नई शमा जला दे। |
क्यूँ तूने दिया था मेरी कश्ती को सहारा, | क्यूँ तूने दिया था मेरी कश्ती को सहारा, | ||
फिर आ गया तूफ़ाँ जो नज़र आया किनारा, | फिर आ गया तूफ़ाँ जो नज़र आया किनारा, | ||
− | क्या खोल है तेरी करनी का बता | + | क्या खोल है तेरी करनी का बता दे। |
भूके जो नहीं उनपे करम है तेरा, | भूके जो नहीं उनपे करम है तेरा, | ||
भूकों के लिए भूख ही इनकाम है तेरा, | भूकों के लिए भूख ही इनकाम है तेरा, | ||
− | दाता है तो भूखों की भी तक़दीर जगा | + | दाता है तो भूखों की भी तक़दीर जगा दे। |
महरूम है रहमत से तेरी भूक के मारे, | महरूम है रहमत से तेरी भूक के मारे, | ||
हर साँस पे लेते हैं ये फाकों के सहारे, | हर साँस पे लेते हैं ये फाकों के सहारे, | ||
− | मौला यही दुनिया है तो दुनिया को मिटा | + | मौला यही दुनिया है तो दुनिया को मिटा दे। |
मिलती न हो मेहनत के नतीजे में जो रोटी, | मिलती न हो मेहनत के नतीजे में जो रोटी, | ||
जिस खेत से बहका हो मुयस्सर न हो रोज़ी, | जिस खेत से बहका हो मुयस्सर न हो रोज़ी, | ||
− | उस खेत के हर कोसाए गन्दुम को जला | + | उस खेत के हर कोसाए गन्दुम को जला दे। |
</poem> | </poem> |
20:40, 18 जनवरी 2015 का अवतरण
अल्लाह ख़ता क्या है ग़रीबों की बता दे,
क़िस्मत के अन्धेरे में नई शमा जला दे।
क्यूँ तूने दिया था मेरी कश्ती को सहारा,
फिर आ गया तूफ़ाँ जो नज़र आया किनारा,
क्या खोल है तेरी करनी का बता दे।
भूके जो नहीं उनपे करम है तेरा,
भूकों के लिए भूख ही इनकाम है तेरा,
दाता है तो भूखों की भी तक़दीर जगा दे।
महरूम है रहमत से तेरी भूक के मारे,
हर साँस पे लेते हैं ये फाकों के सहारे,
मौला यही दुनिया है तो दुनिया को मिटा दे।
मिलती न हो मेहनत के नतीजे में जो रोटी,
जिस खेत से बहका हो मुयस्सर न हो रोज़ी,
उस खेत के हर कोसाए गन्दुम को जला दे।