"वक़्त / जावेद अख़्तर" के अवतरणों में अंतर
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− | ये | + | ये वक़्त क्या है? |
− | ये क्या है | + | ये क्या है आख़िर |
− | कि | + | कि जो मुसलसल<ref>लगातार</ref> गुज़र रहा है |
− | ये जब | + | ये जब न गुज़रा था, तब कहाँ था |
कहीं तो होगा | कहीं तो होगा | ||
गुज़र गया है तो अब कहाँ है | गुज़र गया है तो अब कहाँ है | ||
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कहाँ से आया किधर गया है | कहाँ से आया किधर गया है | ||
ये कब से कब तक का सिलसिला है | ये कब से कब तक का सिलसिला है | ||
− | ये | + | ये वक़्त क्या है |
− | ये | + | ये वाक़ये <ref>घटनाएँ</ref> |
− | + | हादसे <ref>दुर्घटनाएँ</ref> | |
− | + | तसादुम<ref> संघर्ष,टकराव</ref> | |
− | + | हर एक ग़म और हर इक मसर्रत<ref>हर्ष, आनंद, ख़ुशी</ref> | |
− | हरेक नग़मा हरेक ख़ुशबू | + | हर इक अज़ीयत<ref>तकलीफ़</ref> हरेक लज़्ज़त<ref>आनंद</ref> |
− | वो | + | हर इक तबस्सुम<ref>मुस्कराहट</ref> हर एक आँसू |
− | वो लम्स का हो ज़ादू | + | हरेक नग़मा हरेक ख़ुशबू |
− | ख़ुद अपनी आवाज हो | + | वो ज़ख़्म का दर्द हो |
− | माहौल की सदाएँ | + | कि वो लम्स<ref> स्पर्श</ref> का हो ज़ादू |
− | ये | + | ख़ुद अपनी आवाज हो |
− | वो फ़िक्र में | + | कि माहौल की सदाएँ<ref>आवाज़ें</ref> |
+ | ये ज़हन में बनती | ||
+ | और बिगड़ती हुई फ़िज़ाएँ<ref>वातावरण</ref> | ||
+ | वो फ़िक्र में आए ज़लज़ले <ref>भूचाल</ref> हों | ||
+ | कि दिल की हलचल | ||
तमाम एहसास सारे जज़्बे | तमाम एहसास सारे जज़्बे | ||
− | ये जैसे पत्ते हैं बहते पानी की सतह | + | ये जैसे पत्ते हैं |
− | पर जैसे तैरते हैं | + | बहते पानी की सतह पर जैसे तैरते हैं |
− | अभी यहाँ हैं अभी वहाँ है | + | अभी यहाँ हैं अभी वहाँ है |
− | और अब ओझल | + | और अब हैं ओझल |
− | दिखाई देता नहीं | + | दिखाई देता नहीं है लेकिन |
− | ये कुछ तो है जो बह रहा है | + | ये कुछ तो है जो बह रहा है |
ये कैसा दरिया है | ये कैसा दरिया है | ||
किन पहाड़ों से आ रहा है | किन पहाड़ों से आ रहा है | ||
ये किस समन्दर को जा रहा है | ये किस समन्दर को जा रहा है | ||
− | ये | + | ये वक़्त क्या है |
− | कभी-कभी मैं ये सोचता हूँ | + | कभी-कभी मैं ये सोचता हूँ |
− | कि चलती गाड़ी से पेड़ देखो | + | कि चलती गाड़ी से पेड़ देखो |
− | ऐसा लगता है | + | तो ऐसा लगता है दूसरी सम्त<ref>दिशा, ओर</ref>जा रहे हैं |
− | मगर | + | मगर हक़ीक़त में पेड़ अपनी जगह खड़े हैं |
− | तो क्या ये मुमकिन है | + | तो क्या ये मुमकिन है |
− | सारी सदियाँ क़तार अंदर क़तार | + | सारी सदियाँ क़तार अंदर क़तार<ref>पंक्ति दर पंक्ति</ref> |
अपनी जगह खड़ी हों | अपनी जगह खड़ी हों | ||
− | ये वक़्त साकित हो और हम हीं गुज़र रहे हों | + | ये वक़्त साकित<ref>ठहरा हुआ</ref> हो और हम हीं गुज़र रहे हों |
− | इस एक लम्हें में सारे लम्हें | + | इस एक लम्हें में सारे लम्हें |
− | तमाम सदियाँ छुपी | + | तमाम सदियाँ छुपी हुई हों |
− | न कोई | + | न कोई आइन्दा <ref>भविष्य</ref> न गुज़िश्ता <ref>भूतकाल</ref> |
− | जो हो चुका है वो हो रहा है | + | जो हो चुका है वो हो रहा है |
जो होने वाला है हो रहा है | जो होने वाला है हो रहा है | ||
मैं सोचता हूँ कि क्या ये मुमकिन है | मैं सोचता हूँ कि क्या ये मुमकिन है | ||
− | सच ये हो कि सफ़र में हम हैं | + | सच ये हो कि सफ़र में हम हैं |
− | गुज़रते हम हैं | + | गुज़रते हम हैं |
− | जिसे समझते हैं हम | + | जिसे समझते हैं हम गुज़रता है |
− | वो | + | वो थमा है |
− | + | गुज़रता है या थमा हुआ है | |
− | इकाई है | + | इकाई है या बंटा हुआ है |
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− | किसे | + | किसे ख़बर है किसे पता है |
− | + | ये वक़्त क्या है | |
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13:53, 21 जनवरी 2015 के समय का अवतरण
ये वक़्त क्या है?
ये क्या है आख़िर
कि जो मुसलसल<ref>लगातार</ref> गुज़र रहा है
ये जब न गुज़रा था, तब कहाँ था
कहीं तो होगा
गुज़र गया है तो अब कहाँ है
कहीं तो होगा
कहाँ से आया किधर गया है
ये कब से कब तक का सिलसिला है
ये वक़्त क्या है
ये वाक़ये <ref>घटनाएँ</ref>
हादसे <ref>दुर्घटनाएँ</ref>
तसादुम<ref> संघर्ष,टकराव</ref>
हर एक ग़म और हर इक मसर्रत<ref>हर्ष, आनंद, ख़ुशी</ref>
हर इक अज़ीयत<ref>तकलीफ़</ref> हरेक लज़्ज़त<ref>आनंद</ref>
हर इक तबस्सुम<ref>मुस्कराहट</ref> हर एक आँसू
हरेक नग़मा हरेक ख़ुशबू
वो ज़ख़्म का दर्द हो
कि वो लम्स<ref> स्पर्श</ref> का हो ज़ादू
ख़ुद अपनी आवाज हो
कि माहौल की सदाएँ<ref>आवाज़ें</ref>
ये ज़हन में बनती
और बिगड़ती हुई फ़िज़ाएँ<ref>वातावरण</ref>
वो फ़िक्र में आए ज़लज़ले <ref>भूचाल</ref> हों
कि दिल की हलचल
तमाम एहसास सारे जज़्बे
ये जैसे पत्ते हैं
बहते पानी की सतह पर जैसे तैरते हैं
अभी यहाँ हैं अभी वहाँ है
और अब हैं ओझल
दिखाई देता नहीं है लेकिन
ये कुछ तो है जो बह रहा है
ये कैसा दरिया है
किन पहाड़ों से आ रहा है
ये किस समन्दर को जा रहा है
ये वक़्त क्या है
कभी-कभी मैं ये सोचता हूँ
कि चलती गाड़ी से पेड़ देखो
तो ऐसा लगता है दूसरी सम्त<ref>दिशा, ओर</ref>जा रहे हैं
मगर हक़ीक़त में पेड़ अपनी जगह खड़े हैं
तो क्या ये मुमकिन है
सारी सदियाँ क़तार अंदर क़तार<ref>पंक्ति दर पंक्ति</ref>
अपनी जगह खड़ी हों
ये वक़्त साकित<ref>ठहरा हुआ</ref> हो और हम हीं गुज़र रहे हों
इस एक लम्हें में सारे लम्हें
तमाम सदियाँ छुपी हुई हों
न कोई आइन्दा <ref>भविष्य</ref> न गुज़िश्ता <ref>भूतकाल</ref>
जो हो चुका है वो हो रहा है
जो होने वाला है हो रहा है
मैं सोचता हूँ कि क्या ये मुमकिन है
सच ये हो कि सफ़र में हम हैं
गुज़रते हम हैं
जिसे समझते हैं हम गुज़रता है
वो थमा है
गुज़रता है या थमा हुआ है
इकाई है या बंटा हुआ है
है मुंज़मिद<ref>जमा हुआ</ref> या पिघल रहा है
किसे ख़बर है किसे पता है
ये वक़्त क्या है