भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"म्हारो मन / वासु आचार्य" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatRajasthaniRachna}} <poem> ताळ त...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

12:19, 27 फ़रवरी 2015 का अवतरण

ताळ तळाया
जंगल जंगल
हुवणौ चावै-म्हारो मन

सरणाटै री-गूँज गूँज मांय
चावै गूँजणौ
म्हारो मन

बाथ्यां भर भर
मिलणौ चावै
गूंगा पीळा धोरा संग

आ बौरटी
अर खैजड़ी
बणनौ चावै
म्हारो मन

देख चिडकली
पाळ ताळ री
चक चक करणौ चावै मन

नीं ठा जठै सूं-
क्यूं बठै सूं
ऊँचौ उडणौ चावै मन
धरती माथै
घणौ अमूजो
आभो बणनौ चावै मन-