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"ज़ुल्म की चक्की में हमको पीसने का शुक्रिया / महेश कटारे सुगम" के अवतरणों में अंतर
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जिस्म पर चड्डी बची थी वो भी ले ली आपने, | जिस्म पर चड्डी बची थी वो भी ले ली आपने, |
13:13, 6 मार्च 2015 के समय का अवतरण
ज़ुल्म की चक्की में हमको पीसने का शुक्रिया ।
ज़ात-पाँतों मज़हबों में बाँटने का शुक्रिया ।।
जिस्म पर चड्डी बची थी वो भी ले ली आपने,
ख़त्म झंझट कर दिया है छीनने का शुक्रिया ।
एक साज़िश के तहत ही बरगलाया आपने,
झूठ की ठण्डी फुहारें सींचने का शुक्रिया ।
कर लिए ईज़ाद तुमने लूटने के सिलसिले,
दोस्ती का वास्ता दे लूटने का शुक्रिया ।
आपने तो हर तरफ़ ही जाल फैलाया सुगम,
डालकर चुग मछलियों को फाँसने का शुक्रिया ।।
27-01-2015