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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
रँग गुलाल के  
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
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रचनाकार: [[कुमार रवींद्र]]
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
 
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
रँग गुलाल के
+
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
और फाग के बोल सुहाने
+
अपरिचित पास आओ
बुनें इन्हीं से संवत्सर के ताने-बाने
+
  
ऋतु-प्रसंग यह मंगलमय हो
+
आँखों में सशंक जिज्ञासा
हर प्रकार से
+
मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
दूर रहें दुख-दर्द-दलिद्दर
+
जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
सदा द्वार से
+
स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
 +
हिलो-मिलो फिर एक डाल के
 +
खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
कभी किसी को
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सबमें अपनेपन की माया
कष्ट न दें जाने-अनजाने
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अपने पन में जीवन आया
 
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</div>
अग्नि-पर्व यह
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रंगपर्व यह सच्चा होवे
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पाप-ताप सब
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मन के-साँसों के यह धोवे
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हमें न व्यापें
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कभी स्वार्थ के कोई बहाने
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यह मौसम है
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राग-द्वेष के परे नेह का
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हाँ, विदेह होने का
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है यह पर्व देह का
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साँस हमारी
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इस असली सुख को पहचाने
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया