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<div style="background:#dddtransparent; width:95%; height:450px; overflow:auto; border:3px 0px inset #aaa; padding:10px">
<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">हमारे कल की ख़ुदा जाने शक़्ल क्या होगीखुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
<divstyle="text-align: center;">रचनाकार: [[दास दरभंगवीत्रिलोचन]]
</div>
<poemdiv style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">लोटा भर पानी दुपहर में गुड़ खुले तुम्हारे लिए हृदय के संग पिला दो जीद्वारचार शायरी लेकर मुझको मछली भात खिला दो जीअपरिचित पास आओ
पायल कंगन कनबाली सब ले लोआँखों में सशंक जिज्ञासामिक्ति कहाँ, ए डाक्टर साहेब !है अभी कुहासाजहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैंस्तम्भ शेष भय की परिभाषाहिलो-मिलो फिर एक डाल केकिसी तरह मेरे बेटे को चंगा करोखिलो फूल-से, जिला दो जीमत अलगाओ
बरसों से पहना करते हैं वही एक पतलून-कमीजसबमें अपनेपन की मायाअपने पैसे से मुझको तुम कपड़े नये सिला दो जी गाँव छोड़ कर शहर और परदेस चले जाते हैं लोगलोगों को अपने घर पन में ही कोई काम दिला दो जी सड़कें पानी बिजली रोटी रोज़गार का हाल बुराबरगद जैसी जमी हुई सत्ता को जरा हिला दो जीजीवन आया </poemdiv>
</div></div>