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साँचा:KKPoemOfTheWeek

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<div style="background:#eee; padding:10px">
<div style="background: #ffftransparent; width:95%; height:450px; overflow:auto; border:0px inset #aaa; padding:10px">
<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
विद्वान का ढेलाखुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
<div style="text-align: center;">
रचनाकार: [[ तादेयुश रोज़ेविचत्रिलोचन]]
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; line-height: 0; margin: 0 auto; min-height: 590px; padding: 20px 20px 20px 0 20px; white-space: pre;"><div style="float:left; padding:0 25px 0 0">[[चित्र:Kk-poem-border-1.png|link=]]</div>इस कविता को खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वारसुला देना चाहिएअपरिचित पास आओ
इसके पहले कि शुरू हो आँखों में सशंक जिज्ञासाइसका विद्वान होना मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासाइसके पहले कि जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैंयह कविता शुरू हो स्तम्भ शेष भय की परिभाषाहिलो-मिलो फिर एक डाल केखिलो फूल-से, मत अलगाओ
इसके पहले कि सबमें अपनेपन की मायायह तारीफ़ें बटोरे किसी विस्मरण के पल अपने पन में यह जीवित हो  इसके पहले कि अपनी ओर आते शब्दों और आँखों की यह अभ्यस्त हो  इसके पहले कि यह विद्वानों के उपदेश लेना शुरू करे  गुज़रने वाले राहगीर कतराकर गुज़र जाते हैं कोई भी नहीं उठाता वह विद्वान ढेला  उस ढेले के भीतर एक नन्हीं-सी,सफ़ेद,नंगी कविता जलती रहती है  राख हो जाने तक ।  (रचनाकाल : 2002-2003) जीवन आया
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</div></div>