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शहर में रात</div>
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
  
 
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रचनाकार: [[केदारनाथ सिंह]]
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
 
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<div style="border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; line-height: 0; margin: 0 auto; min-height: 590px; padding: 20px 20px 20px 20px; white-space: pre;"><div style="float:left; padding:0 25px 0 0">[[चित्र:Kk-poem-border-1.png|link=]]</div>
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
बिजली चमकी, पानी गिरने का डर है
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
वे क्यों भागे जाते हैं जिनके घर है
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अपरिचित पास आओ
वे क्यों चुप हैं जिनको आती है भाषा
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वह क्या है जो दिखता है धुँआ-धुआँ-सा
+
  
वह क्या है हरा-हरा-सा जिसके आगे
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
हैं उलझ गए जीने के सारे धागे
+
मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
यह शहर कि जिसमें रहती है इच्छाएँ
+
जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
कुत्ते भुनगे आदमी गिलहरी गायें
+
स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
यह शहर कि जिसकी ज़िद है सीधी-सादी
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सबमें अपनेपन की माया
ज़्यादा-से-ज़्यादा सुख सुविधा आज़ादी
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अपने पन में जीवन आया
तुम कभी देखना इसे सुलगते क्षण में
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यह अलग-अलग दिखता है हर दर्पण में
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साथियो, रात आई, अब मैं जाता हूँ
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इस आने-जाने का वेतन पाता हूँ
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जब आँख लगे तो सुनना धीरे-धीरे
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किस तरह रात-भर बजती हैं ज़ंजीरें
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया