<div class='box' style="background-color:#DD5511eee;width:100%; alignpadding:center10px"><div class='boxtop'><div></div></div><div class='boxheader' style='background-color:#DD5511; color:#ffffff'>''' सप्ताह की कविता'''</div><div id="kkHomePageSearchBoxDiv" class='boxcontent' style='background-color:#F5CCBBtransparent;borderwidth:1px solid #DD551195%;'><!----BOX CONTENT STARTS------> '''शीर्षकheight: '''पुस्तकें <br> 450px; '''रचनाकार:''' [[विश्वनाथप्रसाद तिवारी]] <pre style="overflow:auto;heightborder:21em0px inset #aaa;padding:10px">नही, इस कमरे में नहींउधरउस सीढ़ी के नीचेउस गैरेज के कोने में ले जाओपुस्तकेंवहाँ, जहाँ नहीं अट सकती फ्रिजजहाँ नहीं लग सकता आदमकद शीशा
बोरी में बांध कर <div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">चट्टी से ढँक करकुछ तख्ते खुले तुम्हारे लिए हृदय के नीचेकुछ फूटे गमले के ऊपररख दो पुस्तकेंद्वार</div>
ले जाओ इन्हें तक्षशिला<div style="text- विक्रमशिलाalign: center;">या चाहे जहाँरचनाकार: [[त्रिलोचन]]हमें उत्तराधिकार में नहीं चाहिए पुस्तकेंकोई झपटेगा पास बुक परकोई ढूंढ़ेंगा लाकर की चाबी किसी की आँखों में चमकेंगे खेतकिसी के गड़े हुए सिक्केहाय हाय, समयबूढ़ी दादी सी उदास हो जाएँगी पुस्तकें</div>
पुस्तकों!<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">जहाँ भी रख दें वेखुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वारपड़ी रहना इंतजार मेंअपरिचित पास आओ
आयेगा कोई न कोईआँखों में सशंक जिज्ञासादिग्भ्रमित बालक जरूरमिक्ति कहाँ, है अभी कुहासाकिसी शताब्दी मेंजहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैंअंधेरे में टटोलता अपनी राहस्तम्भ शेष भय की परिभाषाहिलो-मिलो फिर एक डाल केखिलो फूल-से, मत अलगाओ
स्पर्श से पहचान लेना उसेसबमें अपनेपन की मायाआहिस्ते-आहिस्ते खोलना अपना हृदयजिसमें सोया है अनन्त समयऔर थका हुआ सत्यदबा हुआ गुस्साऔर गूंगा प्यारदुश्मनों के जासूसपकड़ नहीं सके जिसे!अपने पन में जीवन आया </prediv><!----BOX CONTENT ENDS------></div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>