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साँचा:KKPoemOfTheWeek

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<div class='box' style="background-color:#DD5511eee;width:100%; alignpadding:center10px"><div class='boxtop'><div></div></div><div class='boxheader' style='background-color:#DD5511; color:#ffffff'>'''&nbsp;सप्ताह की कविता'''</div><div id="kkHomePageSearchBoxDiv" class='boxcontent' style='background-color:#F5CCBBtransparent;borderwidth:1px solid #DD551195%;'><!----BOX CONTENT STARTS------>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षकheight: '''माँ का नाच<br>&nbsp450px;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[बोधिसत्व]] <pre style="overflow:auto;heightborder:21em0px inset #aaa;padding:10px">वहाँ कई स्त्रियाँ थींजो नाच रही थीं, गाते हुए
वे खेत में नाच रही थीं या<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">आंगन में यह उन्हें भी नहीं पता थाएक मटमैले वितान खुले तुम्हारे लिए हृदय के नीचे थाचल रहा यह नाच ।द्वार</div>
कोई पीली साड़ी पहने थीकोई धानीकोई गुलाबी, कोई जोगन-सीसब नाचते हुए मदद कर रही थींएक<div style="text-दूसरे कीalign: center;">थोड़ी देर नाच कर दूसरी के लिएरचनाकार: [[त्रिलोचन]]हट जाती थीं वे नाचने की जगह से ।</div>
कुछ देर बाद बारी आई माँ के नाचने की<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">उसने बहुत सधे ढंग सेशुरू किया नाचनागाना शुरू किया बहुत पुराने तरीके सेपुराना गीतमाँ खुले तुम्हारे लिए हृदय के बाद नाचना था जिन्हें वे भीद्वारजो नाच चुकी थीं वे भी अचम्भितमन ही मन नाच रही थीं माँ के साथ ।अपरिचित पास आओ
मटमैले वितान के नीचेइस छोर से उस छोर तक नाच रही थी माँपैरों आँखों में बिवाइयाँ थीं गहरे तक फटीसशंक जिज्ञासाटूट चुके थे घुटने कई बारमिक्ति कहाँ, है अभी कुहासाझुक चली थी कमरजहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैंपर जैसे भँवर घूमता हैस्तम्भ शेष भय की परिभाषाजैसे बवंडर नाचता है वैसेहिलो-मिलो फिर एक डाल केनाच रही थी माँ ।खिलो फूल-से, मत अलगाओ
आज बहुत दिनों बाद उसेमिला था नाचने का मौकाऔर वह नाच रही थी बिना रुकेगा रही थी बहुत पुराना गीतगहरे सुरों में । अचानक ही हुआ माँ का गाना बन्दपर नाचना जारी रहावह इतनी गति में थी कि परबसघूमती जा रही थीफिर गाने सबमें अपनेपन की जगह उठा विलाप का स्वरमायाऔर फैलता चला गया उसका वितान । वह नाचती रही बिलखते हुएधरती के इस छोर से उस छोर तकसमुद्र की लहरों से लेकर जुते हुए खेत तकसब भरे से उसके नाच की धमक सेसब अपने पन में समाया था उसका बिलखता हुआ गाना ।जीवन आया </prediv><!----BOX CONTENT ENDS------></div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>