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"लुगड़ा-धोती को दियो रे इनाम / पँवारी" के अवतरणों में अंतर

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आरू बाबुल आवय नी जाय
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लुगड़ा-धोती को दियो रे इनाम
अहीर मऽ रोअ् अड़अ् रह्यो।
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हरि जो सखि नऽ काकन बाँध्या
आरू एक छन देखय वा बाट
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पूछय सखि कोखऽ दियो इनाम
काका जी मऽ रोअ् कब आवय।
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हरि जो सखि नऽ काकन बाँध्या।।
आरू काका जी आवय नी जाय
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अहीर मऽ रोअ् अड़अ् रह्यो।
+
आरू एक छन देखय वा बाट
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भैया मऽ रोअ् कब आवय।।
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आरू भैयाजी आवय नी जाय
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अहीर मऽ रोअ् अड़अ् रह्यो
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आरू एक छन देखय वा बाट
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मामाजी मऽ रोअ् कब आवय।
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आऊर मामाजी आवय नी जाय
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अहीर मऽ रोअ् अड़अ् रह्यो।
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आरू एक छन देखय वा बाट
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मावस्या मऽ रोअ् कब आवय।
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आरू मावस्या जी आवय नी जाय
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अहीर मऽ रोअ् अड़अ् रह्यो।
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आरू एक छन देखय वा बाट
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बव्हनय मऽ रोअ् कब आवय।
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आरू बव्हनय आवय नी जाय
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अहीर मऽ रोअ् अड्अ् रह्यो।।
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11:26, 20 मार्च 2015 के समय का अवतरण

पँवारी लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

लुगड़ा-धोती को दियो रे इनाम
हरि जो सखि नऽ काकन बाँध्या
पूछय सखि कोखऽ दियो इनाम
हरि जो सखि नऽ काकन बाँध्या।।