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बघेली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
नम्बू लगायो चहकने का
रस लइगा भंवरवा अपने का
राजा जनक के द्वारे मचलि रहे
मचलि रहे चारों भाई हो - जनक के
कौने का लाल कउने का लाल
बजावइ मुरलिया- कउने का लाल
कबै होई हो कब होई भेट नये राजा से
बजरिये मा हो बजरिये मा होई भेट नये राजा से
भंवरा लोभी रे फुलवरिया न छोड़े लोभी रे
गंगा नहाय कपिल दिहे दान
ढिलाव धरम कै जून चिरैया
जेखे सुन्दर रूप नैना लगे रघुवर से
दिन बिसरै न रात गौरा तोरी झुलनिया