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बघेली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
भइउं न ब्रज केर मोरा सखी रे मैं
ओही बिरज मा बड़े-बड़े बिरछा है
बैठों पंख मुरेरा सखी रे मैं
भइउं न ब्रज केर मोरा सखी रे मैं
अरे झरि झरि पंख गिरें धरती मां
बीनै ब्रज केर लोगा सखी रे मैं
भंइउ न ब्रज केर मोरा सखी रे मैं
उन पंखन केर मकुट बनत है
बांधैं जुगुल किशोरा सखी रे
भइउं न ब्रज केर मोरा सखी रे मैं