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बघेली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
मैं खेरे कै दुबिया मोरे साजन हां
कि मैं खेर छोउि़ कहां जाऊं
ओही गली मोर सजना अइहीं
मैं चरन रहिउं लपटाय