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बघेली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

साजन केर अवन्ती सुनि कै मोरे रउरे ए हां
मैं जिव्हिया राख्यों बिछाय।
ई गौं गौं पांव धरेउ मोरे सजना
मोरी जिव्हिया दरद ना होय
अरे साजा कहि आवा हां सजन अरे कहि आवा
या जिव्हिया जरि जाय हो साजा अरे कहि आवा
अरे अइहैं धौ कउन महिनवा हमार पिया
अइहैं धौ कउन महिनवा सु मोर पिया
अरे चारी महीना गरम रितु आई
चोलिया चुवै पसिनवा सु मोर पिया
अइहैं धौ कउन महिनवा सु मोर पिया
चारी महीना वर्षा रितु आई रे
ठाढ़े भीजउ अंगनवा सु मोर पिया
अइहैं धौ कउन महिनवा सु मोर पिया
अरे चारि महीनवा शरद रितु आई
थर थर कांपै शरिरवा सु मोर पिया
अइहैं धौ कउन महिनवा सु मोर पिया
आवइं धौ कउन महिनवा सु मोर पिया।