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'''(दोहा संख्या  1 से 10)'''
 
  
श्री राम बाम दिसि जानकी लखन दाहिनी ओर ।
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'''भाग-1 बाल काण्ड प्रारंभ'''
ध्यान सकल कल्यानमय सुरतरू तुलसी तोर।1।
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सीता लखन समेत प्रभु सेाहत तुलसीदास।
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'''ऊँ श्रीसीतारामाभ्यां नमः'''
हरषत सुर बरषत सुमन सगुन सुमंगल बास।2।
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पंचवटी बट बिटप तर सीता लखन समेत।
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रेफ आत्मचिन्मय अकल, परब्रह्म पररूप।
सोहत तुलसीदास प्रभु सकल सुमंगल देत।3।
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श्री चित्रकूट सब िदन बसत प्रभु सिय लखन समेत।
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हरि-हर- अज- वन्दित-चरन, अगुण अनीह अनूप।1।
राम नाम जप जापकहि तुलसी अभिमत देत।4।
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पय अहार फल खाइ जपु राम नाम षट मास।
+
बालकेलि दशरथ -अजिर, करत सेा फिरत सभाय।
सकल सुमंगल सिद्धि सब करतल तुलसीदास ।5।
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राम नाम मनिदीप धरू जीह देहरीं द्वार।
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पदनखेन्दु तेहि ध्यान धरि विरवत तिलक बनाय।2।
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर।6। 
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हियँ निर्गुन नयनन्हि सगुन रसना राम सुनाम।
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अनिल सुवन पदपद्यम्रज, प्रेमसहित शिर धार।
मनहुँ पुरट संपुट लसत लसत तुलसी ललित ललाम।7।
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सगुल ध्यान रूचि सरस नहिं निर्गुन मन में दूरि।
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इन्द्रदेव टीका रचत, कवितावली उदार।3।
तुलसी सुमिरहु रामको नाम सजीवन मूरि।8।
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एकु छत्रु एकु मुकुटमनि सब बरननि पर जोउ।
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बन्दौं श्रीतुलसीचरन नख, अनूप दुतिमाल।
  तुलसी रघुबर नाम के बरन बिराजत दोउ।9।
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कवितावलि-टीका लसै कवितावलि-वरभाल।4।
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'''(बालरूप की झाँकी)'''
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  श्री अवधेसके द्वारें सकारे गई सुत गोद कै भूपति लै निकसे।
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अवलोकि हौं सोच बिमोचनको ठगि-सी रही, जे न ठगे धिक-से।।
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तुलसी मन-रंजन रंजित-अंजन नैन सुखंजन-जातक-से।।
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सजनी ससिमें समसील उभै नवनील सरोरूह -से बिकसे।1।
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पग नूपुर औ पहुँची करकंजनि मंजु बनी मनिमाल हिएँ।
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नवनीत कलेवर पीत झँगा झलकै पुलकैं नृपु गोद लिएँ।
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अरबिंदु सेा आननु रूप मरंदु अनंदित लोचन -भृंग पिएँ।
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मनमो न बस्यौ अस बालकु जौं तुलसी जगमें फलु कौन जिएँ।2।
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तनकी दुति स्याम सरोरूह लोचन कंजकी मंजुलताई हरैं।
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अति सुंदर सोहत धूरि भरे छबि भूरि अनंगकी दुरि धरैं।
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दमकैं दँतियाँ दुति दामिनि-ज्यों किलकैं कल बाल-बिनोद करैं।
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अवधेस के बालक चारि सदा तुलसी-मन -मंदिरमें बिहरैं।3।
  
नाम राम केा अंक है सब साधन हैं सून।
 
अंक गएँ कछु हाथ नहिं  अंक रहें दस गून।10।
 
  
 
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13:44, 28 मार्च 2015 के समय का अवतरण


भाग-1 बाल काण्ड प्रारंभ

ऊँ श्रीसीतारामाभ्यां नमः

रेफ आत्मचिन्मय अकल, परब्रह्म पररूप।

हरि-हर- अज- वन्दित-चरन, अगुण अनीह अनूप।1।

बालकेलि दशरथ -अजिर, करत सेा फिरत सभाय।

पदनखेन्दु तेहि ध्यान धरि विरवत तिलक बनाय।2।

अनिल सुवन पदपद्यम्रज, प्रेमसहित शिर धार।

इन्द्रदेव टीका रचत, कवितावली उदार।3।

बन्दौं श्रीतुलसीचरन नख, अनूप दुतिमाल।

कवितावलि-टीका लसै कवितावलि-वरभाल।4।


(बालरूप की झाँकी)


 श्री अवधेसके द्वारें सकारे गई सुत गोद कै भूपति लै निकसे।

अवलोकि हौं सोच बिमोचनको ठगि-सी रही, जे न ठगे धिक-से।।

तुलसी मन-रंजन रंजित-अंजन नैन सुखंजन-जातक-से।।

सजनी ससिमें समसील उभै नवनील सरोरूह -से बिकसे।1।


पग नूपुर औ पहुँची करकंजनि मंजु बनी मनिमाल हिएँ।

नवनीत कलेवर पीत झँगा झलकै पुलकैं नृपु गोद लिएँ।

अरबिंदु सेा आननु रूप मरंदु अनंदित लोचन -भृंग पिएँ।

मनमो न बस्यौ अस बालकु जौं तुलसी जगमें फलु कौन जिएँ।2।


तनकी दुति स्याम सरोरूह लोचन कंजकी मंजुलताई हरैं।

अति सुंदर सोहत धूरि भरे छबि भूरि अनंगकी दुरि धरैं।

दमकैं दँतियाँ दुति दामिनि-ज्यों किलकैं कल बाल-बिनोद करैं।

अवधेस के बालक चारि सदा तुलसी-मन -मंदिरमें बिहरैं।3।