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"लोग समय के गुलाम बाटे / सूर्यदेव पाठक 'पराग'" के अवतरणों में अंतर

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लोग समय के गुलाम बाटे
केहू कसले लगाम बाटे

अझुराइल बा सभे इहाँ के
ऊपर मन से सलाम बाटे

खाते-पियते इहाँ-उहाँ में
सबके जिनगी तमाम बाटे

भीतर करिया जमा भइल बा
बाहर धप्-धप् त चाम बाटे

रावन मन में बसल तबहुँओ
मुँह से सुमिरत ई राम बाटे