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"फूल खिल जाई महँक से मुग्ध कर दी / सूर्यदेव पाठक 'पराग'" के अवतरणों में अंतर
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फूल खिल जाई महँक से मुग्ध कर दी
एक झोंका प्रान-मन में गंध भर दी
लक्ष्य जब मजबूत होई आदमी के
वक्त अपने-आप जाये के डगर दी
देख के माकूल मौसम काम कर लीं
फेंड़, जब आई समय तब फूल-फर दी
सिद्धि बस ओके गले जयमाल डाली
साधना में वक्त जे आठो पहर दी