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13:42, 30 मार्च 2015 के समय का अवतरण
काहे उनका अभी खबर नइखे
कइसे उनका कहीं डगर नइखे
नाव बन्हले रहे द घाटे पर
खेवे लायक अगर लहर नइखे
मन इहाँ के तरे भला लागो
हमरा लायक जगह शहर नइखे
कोई चहलो प मर सकी कइसे
शुद्ध मिलतो जहाँ जहर नइखे
बाहरे से भले जुटल लागे
जे बँटाइल ना, एको घर नइखे
कोई डर जाय उनका हरकत से
उनका केहू से तनिको डर नइखे
आज कहवाँ ‘पराग’ लउकत बा
खून से जे जमीन तर नइखे