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"हमारा अवकाश नहि / प्रवीण काश्‍यप" के अवतरणों में अंतर

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11:39, 4 अप्रैल 2015 के समय का अवतरण

आँखिक कोर सँ
फराके रहैत अछि,
हमर नोरक बुन्न
अवकाश कतऽ!
तोरा संगक अतीतक स्मृतिमे
होइत रहैत अछि मिज्झर।
अवकाश कतऽ!

फुटलका चूड़ीक खेलमे
एक-एक टूट घींचबा काल
कतेक एकाग्र भऽ जाइत छल मन!
मारि-दंगा-कट्टिस करबा उपरान्त
कनिए काल मे एक होएबा लेल
मिल जाए लेल; कतेक थिर,
पवित्र छल मन!
मुदा आइ ओ समग्र पल बिछबालेल
व्यग्र मन कें फन्द कतेक?
अवकाश कतऽ!

‘चिदणु’ जकाँ संगे रहैत छी सभ,
अपन-अपन अस्तित्वक
थोथ प्रदर्शन में व्यस्त;
आइ, महत्वाकांक्षाक भाव सँ मतल
फराक-फराक विज्ञान में
वैषम्य कतेक?
अवकाश कतऽ!

शून्य मस्तिष्कक मनुष्यक आँखि सँ,
तकैत अतीतक कोनो चेन्ह, वर्तमान में!
राग-द्वेष सँ भरल हृदय कें
नुकौने रहैत छी, ठोरक मुस्की सँ!
अवकाश कतऽ!

संगी-साथी बिनु अहुरिया कटैत
हिमालयी मन सँ दबल, क्लान्त
दौगैत भागैत शरीर कें
एकान्त कतऽ
अवकाश कतऽ!