भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सुन्दर पास पड़ोस बनाओ / श्रीनाथ सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKRachna |रचनाकार=श्रीनाथ सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
14:36, 5 अप्रैल 2015 के समय का अवतरण
देखो क्या कहतीं हैं कलियाँ,
हर दम हँसो और मुस्काओ।
रहो सदा तुम सबके प्यारे,
सुन्दर पास पड़ोस बनाओ।
देखो क्या कहतीं हैं नदियाँ,
हर दम आगे बढ़ते जाओ।
शीतल करो सदा सब ही को,
सुन्दर पास पड़ोस बनाओ।
देखो क्या कहते तरु पौधे,
तुम ऊपर को उठते जाओ।
हरा भरा मन रक्खो अपना,
सुन्दर पास पड़ोस बनाओ।
देखो क्या कहता है दीपक,
अन्धकार से मत घबराओ।
जब तक दम में दम बाकी हो,
सुन्दर पास पड़ोस बनाओ।