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सग्गा / निशान्त

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बै कैवण मेंसग्गा तो अवस कहिजै
पण जाबक ई नीं समझै
सग्गै तो संकट !रौ संकट।
छुछक, भात,उढावणीओढावणी अर दायजो
लेंवती बेळा
कदै ई कदेई नीं सोचै
कै सग्गो
कळीज तो नीं गयो
करज कर्ज रै कादै ! कादै।
</poem>
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